मां को कई दिनों से बुखार आ रहा 'से था. डाक्टर ने ब्लड टैस्ट लिखा. रिपोर्ट में चिकनगुनिया की पुष्टि हुई. डाक्टर ने कहा कि एक हफ्ते तक बुखार रहेगा. मगर उस दिन जब उन का बुखार 105 डिग्री पर पहुंच गया तो असीम ने घबरा कर बहन को उस की ससुराल में फोन किया. मां बिलकुल बेहोशी की हालत में थीं. असीम सुबह से ठंडे पानी की पट्टियां उन के माथे पर रख रहा था. मगर बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा था.
डाक्टर ने हर 4 घंटे पर पैरासिटामौल देने के लिए कहा था. असीम नियमित समय पर दवा दे रहा था. मगर शाम होतेहोते हालत और बिगड़ गई. बुखार 102 से बढ़ कर 105 हो गया और बदनदर्द से कराहतेकराहते मां बिलकुल बेहोश होने लगीं. असीम घबरा गया. रात में तो कोई डाक्टर भी नहीं मिलेगा. अस्पताल भी दूर है. अकेले कैसे ले कर जाए. कोई चारा न देख असीम ने बड़ी बहन रश्मि को फोन किया. रश्मि की शादी 2 साल पहले हुई थी. उस का मायका सुल्तानपुर में था और ससुराल जौनपुर में भाई का फोन आते ही रश्मि भी घबरा गई. पति काम से दिल्ली गए हुए थे, इसलिए वह देवर को साथ ले कर रात में ही निकल पड़ी. बाइक से 3 घंटे में वह घर पहुंच गई.
मां की हालत काफी खराब थी. पूरा शरीर गरम तवे सा तप रहा था. वे अर्धबेहोशी की हालत में थीं. रश्मि ने तुरंत कमरे से सभी को बाहर कर के मां के कपड़े उतारे और ठंडे पानी में तौलिया भिगोभिगो कर पूरा शरीर स्पंज करना शुरू किया. इसी के साथ उस ने मां का सिर और मुंह भी ठंडे पानी से धो डाला. तेज बुखार को कम करने का यह तरीका उस ने बचपन में मां से ही सीखा था. शरीर पोंछने के बाद उस ने मां को कपड़े पहनाए.
थोड़ी देर में बुखार कम होने लगा. सारी रात रश्मि चम्मच से उन को इलैक्ट्रोल लिक्विड और जूस देती रही ताकि शरीर में पानी की कमी न हो. साथ ही, चारचार घंटे पर लगातार दवा देते रहने से सुबह तक फीवर 101 पर आ गया. सुबह मां ने आंखें खोलीं तो सब ने राहत की सांस ली.
अगर रश्मि रात में ही वहां न पहुंचती तो पता नहीं क्या होता. असीम अभी छोटा था. फिर तेज बुखार को उतारने के लिए जो तरीका रश्मि ने अपनाया वह असीम न कर पाता. जाड़े की शुरुआत के साथ ही उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में डेंगू और चिकनगुनिया की बीमारी ने लोगों को जकड़ लिया है.
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