बतौर सैलानी, ज्यादातर लोग नदी, पहाड़, झील, झरने, रेगिस्तान, समुद्र, नए देश और शहर वगैरह देखने जाते हैं ताकि रोजमर्रा की जिंदगी से दूर हो कर कुछ दिन ऐसी जगह सुकून से बिताए जा सकें जहां अलग संस्कृति, लोग और खानपान को जाननेसमझने का मौका मिले.
पर 8 अरब की इस दुनिया में सब का मिजाज एक सा हो, यह जरूरी नहीं है. हाल ही में मेरा एक दोस्त मुंबई घूम कर आया और बोला कि वहां उसे सब से ज्यादा धारावी बस्ती ने लुभाया.
मुझे समझ नहीं आया कि 'मायानगरी' के नाम से मशहूर मुंबई की गंदी झोंपड़पट्टी धारावी में ऐसा क्या था जो मेरे दोस्त के दिलोदिमाग में बस गया. यहीं से मुझे 'डार्क टूरिज्म' की भनक लगी. अगर आप के लिए भी यह शब्द नया हो तो इस के बारे में एक उदाहरण से समझते हैं.
राजस्थान का एक गांव है कुलधरा. अगर इस के इतिहास और वर्तमान में फर्क महसूस करें तो बीते कल को यह एक अच्छी बसावट वाला गांव था, जो आज पूरी तरह उजड़ चुका है. कहते हैं कि यहां रात को कोई इंसान तो क्या, परिंदा भी पर नहीं मारता है पर क्यों?
दरअसल ऐसा माना जाता है कि साल 1300 में पालीवाल ब्राह्मण समाज ने सरस्वती नदी के किनारे जैसलमेर जिले में इस गांव को बसाया था. पर अचानक यह उजाड़ कैसे हो गया? एक मिथक के मुताबिक, यहां की रियासत के दीवान सालम सिंह की गंदी नजर इस गांव की एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गई थी. उस ने इस के लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था और उस लड़की के घर संदेश भिजवाया था कि अगर अगली पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला कर के लड़की को उठा ले जाएगा.
कहा जाता है कि सभी गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हुए और पंचायत ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए, वे अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे और अगली शाम कुलधरा गांव कुछ यों वीरान हुआ कि आज तक नहीं बस पाया है.
Esta historia es de la edición February Second 2023 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor ? Conectar
Esta historia es de la edición February Second 2023 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor? Conectar
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.