देशभर में पढ़ाई के मकसद से छात्र एक शहर से दूसरे शहर जाते हैं, इस में से बड़ी तादाद छोटे शहरों से निकल महानगरों की तरफ जाती है, जहां पढ़ाई के बड़ेबड़े हब बने हुए हैं. वहां जा कर छात्रों के पेरैंट्स को बच्चों के कोर्स के लिए भारीभरकम फीस तो चुकानी पड़ती ही है, साथ ही, उन के रहनेखाने के लिए बंदोबस्त भी करना पड़ता है जो उन पर डबल मार से कम नहीं.
22 वर्षीय नितेश दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहता है. नितेश इस इलाके से निकले उन गिनेचुने लड़कों में से है जो पढ़ाई के लिए नोएडा स्थित शारदा जैसी महंगी यूनिवर्सिटी तक पहुंचा है. दरअसल मजदूर आबादी वाला यह इलाका कच्ची कालोनियों से घिरा हुआ है. यह पूरा इलाका पहाड़ पर बसा है, इसे दिल्ली की पहाड़ी भी कहा जाता है. यहां पास में काली घाटी रोड है जो जेएनयू के पीएसआर रौक की ऊंचाई के लगभग बराबर है.
नितेश के परिवार की आर्थिक स्थिति यहां बाकियों के मुकाबले ठीकठाक है तो बेटे की ख्वाहिश को वे मना न कर सके. मगर यह स्थिति इतनी भी मजबूत नहीं कि बेटे को बीबीए कराने के लिए 10 लाख रुपए जैसी बड़ी रकम वे दे पाते. उन्होंने अपने रिश्तेदारों से थोड़ाबहुत उधार लिया. लेकिन इतना ही काफी नहीं, 10 लाख रुपए के शैक्षणिक खर्च के इतर परिवार वालों के सामने बच्चे के होस्टल, कपड़ालत्ता, घूमनाफिरना आदि खर्चे भी मुंहबाए खड़े हो गए.
नितेश बताता है कि वह अपने इलाके में संपन्न परिवारों में जरूर आता है पर स्थिति इतनी भी मजबूत नहीं कि उस के परिवार वाले इतने बड़े खर्चे उठा पाएं. वह कहता है, "हमारे जैसे परिवार के लिए एक इंसिडेंट ही काफी है अर्श से फर्श तक आने के लिए और अगर मैं अपनी पढ़ाई से कुछ अच्छा नहीं कर पाया तो कहीं यह वह इंसिडेंट न बन जाए, क्योंकि पापा ने अपनी सेविंग का एक बड़ा हिस्सा मेरी पढ़ाई में लगा दिया है."
2017 में नितेश ने शारदा यूनिवर्सिटी से 'बीबीए इन बिजनैस इटैलिजेंस एंड डाटा एनालिटिक्स' में दाखिला लिया था. तब इस की फीस तकरीबन एक साल की 1,72,000 रुपए थी, जो कोर्स बढ़ने के साथ 5 प्रतिशत की दर से बढ़ती रही. इस के अलावा नितेश ने बताया कि वहां पढ़ते हुए उस ने वहीं कैंपस में होस्टल लिया जिस का सालाना खर्चा 85 हजार से 1 लाख रुपए का था.
Esta historia es de la edición March First 2023 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor ? Conectar
Esta historia es de la edición March First 2023 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor? Conectar
निशानेबाजी की 'द्रोणाचार्य' सुमा शिरूर
सुमा शिरूर भारतीय निशानेबाज हैं. वर्तमान में सुमा भारतीय जूनियर राइफल शूटिंग टीम की कोच हैं. सुमा शूटिंग में अब तक कई मैडल जीत चुकी हैं, वहीं उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
राज कपूर की 100वीं जयंती ऐसे ही कोई नहीं बन जाता शोमैन
राज कपूर नेहरूवादी सामाजिक सोच को ले कर चल रहे थे लेकिन उन की लगभग हर फिल्म के लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित थे. यही एक वजह भी है कि राज कपूर की फिल्मों में समाजवादी मिश्रण नजर आया और उन्होंने वर्ग संघर्षों से जनित आम लोगों के सामाजिक बदलावों को परदे पर उतारा.
संतान को ही क्यों दें संपत्ति
राजनीति हो या बिजनैस सही उत्तराधिकारी का चयन ही विरासत को आगे बढ़ाता है. यदि उत्तराधिकारी ढूंढ़ने में लगता है तो समय लगता परिणाम भविष्य में घातक भी साबित होते हैं.
दुर्घटना हो जाए तो
दुर्घटना के बाद सही कदम उठाना आप के और दूसरों के लिए मददगार हो सकता है लेकिन आमतौर पर लोगों को की जानकारी कम होती है कि ऐसी परिस्थिति में वे क्या करें. जानिए यदि रास्ते में दुर्घटना हो जाए तो क्या करें.
मरने के बाद धार्मिक आडंबर के नाम पर लूट
मौत के बाद, बजाय शरीर के खाक होने के, व्यक्ति के साथ क्या होता है इस का कोई प्रमाण नहीं. बावजूद हिंदुओं में मृत्यपरांत धार्मिक कर्मकांड भरे पड़े हैं. इस के केंद्र में पंडे हैं जो दानदक्षिणा का धंधा चलाए रखना चाहते हैं.
अधूरा प्यार
अपने अधूरे को पाने की लालसा एक बार फिर मन में बलवती हो उठी थी. लेकिन रोज ने मुझे ऐसा आईना दिखाया कि उस में अपना चेहरा देख मुझे शर्म आ रही थी.
संकट कटे मिटे सब पीड़ा
गाय रोटी खाएगी तो ग्रह दोष मिटेगा, कुत्ते को खिलाओ तो दुश्मन भागेगा. मेहनत से दूर भागने वालों ने तांत्रिकों को भिखारी से करोड़पति बना दिया है, अरे वाह, यह कैसा खेल है, आप भी पढ़िए.
बीमार न कर दें पसंदीदा फूड
बच्चे तो बच्चे, अब बड़े भी जीभ के गुलाम बन गए हैं जो चटपटे खाने की तरफ दौड़ पड़ते हैं. लेकिन ये फूड्स आप को बीमार भी कर सकते हैं.
वोट ट ने बदली महिलाओं की तसवीर
रामचरितमानस में जिन औरतों को 'ताड़न की अधिकारी' बता कर वर्ण व्यवस्था का शिकार बनाया गया, वोट व्यवस्था में वही औरतें चुनावी जीत का आधार बन कर वर्ण व्यवस्था पर करारी चोट कर रही हैं.
घर खरीदने से पहले
अपना घर अपना ही होता है, भले छोटा ही हो. कई बार हम घर खरीदते समय ऐसी लापरवाहियां कर बैठते हैं जो बाद में दिक्कत देती हैं. आज के समय में घर खरीदते समय सावधानियां बरतना बहुत जरूरी है.