16 साल की उम्र से एंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में कदम रखने वाले शाहिद कपूर ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत बतौर लीड हीरो फिल्म 'इश्क विश्क' से की थी. उस के बाद शाहिद ने लगातार करीबन हर जौनर की फिल्मों में काम किया. फिर चाहे वह फिल्म 'हैदर' हो, 'कमीने' हो, 'एक विवाह', 'जब वी मेट', 'उड़ता पंजाब' या 'कबीर सिंह' हो.
शाहिद कपूर को तकरीबन सभी फिल्मों में दर्शकों से प्यार मिला. हालांकि उन की हालिया फिल्म 'जर्सी' फ्लॉप रही. 20 साल के कैरियर में शाहिद कपूर ने कई सारे उतारचढ़ाव, हिट और फ्लौप फिल्मों का दौर देखा. फिलहाल वे प्राइम वीडियो की वैब सीरीज 'फर्जी' के जरिए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नजर आ रहे हैं और काफी सारी वाहवाही भी बटोर रहे हैं क्योंकि 'फर्जी' में उन का काम बहुत पसंद किया जा रहा है.
कबीर सिंह की अपार सफलता के बाद ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि शाहिद को ओटीटी की तरफ रुख करना पड़ा ? अपने 20 साल के कैरियर को वह कैसे देखते हैं? अपनी फिल्मों की सफलता और असफलता को ले कर उन का क्या कहना है ? ऐसे ही कई दिलचस्प सवालों के जवाब दिए शाहिद कपूर ने अपने खास अंदाज में पेश हैं शाहिद कपूर के साथ हुई बातचीत के चुनिंदा अंश.
वैब सीरीज 'फर्जी' के जरिए शाहिद की ओटीटी प्लेटफॉर्म पर शुरुआत हुई. जब उन से ओटीटी पर आने की वजह पूछी तो वे कहते हैं, “मैं ने जब ओटीटी पर वैब सीरीज 'फर्जी' का चुनाव किया तो सब को यही लगा और लोगों की तरह कोविड-19 के बाद मेरी दिलचस्पी भी ओटीटी की तरफ बढ़ी है. कोविड- 19 की पहली लहर के पहले से ही मेरी मेकर्स राज डीके से बातचीत चल रही थी. उन लोगों ने मुझे फिल्म के लिए बोला था लेकिन मैं ने उन से कहा कि मैं वैब सीरीज करना चाहता हूं. मेरे मुंह से यह सुन कर वो दोनों आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि मेरी उसी दौरान कबीर सिंह रिलीज हुई थी और हिट भी हुई थी.
Esta historia es de la edición March First 2023 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor ? Conectar
Esta historia es de la edición March First 2023 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor? Conectar
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.