धार्मिक पर्यटन सुकून नहीं परेशानी का सबब
Sarita|August First 2023
पिछले एक दशक के दौरान भाजपा सरकार ने मंदिर निर्माण व रखरखाव पर इतना जोर दिया कि लोग धर्म से ऊबें न और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिले. इस के लिए करोड़ों सरकारी रुपए फूंके गए. इस से आम नागरिक को सुकून मिला या परेशानी, जानिए इस रिपोर्ट में.
शैलेंद्र सिंह
धार्मिक पर्यटन सुकून नहीं परेशानी का सबब

3 उज्जैन के महाकाल में दर्शन करने का कार्यक्रम तय किया. वे अपनी कार से 8 घंटे का सफर तय कर के रात करीब 11 बजे उज्जैन पंहुच गए. पहले से ही धर्मशाला का नंबर ले कर वहां रुकने का इंतजाम हो गया था. वहां धर्मशाला में रुके. धर्मशाला के मैनेजर ने बताया कि सुबह की आरती देखने के लिए पहले से रजिस्ट्रेशन करा लीजिए. आधार कार्ड और प्रति व्यक्ति सौ रुपए ले कर रजिस्ट्रेशन हो गया. इस के बाद रात का खाना खाते 12 बज गए. मैनेजर ने यह बताया था कि 2 से 3 बजे के बीच मंदिर के गेट नंबर 2 पर पहुंच जाना क्योंकि सीमित संख्या में ही दर्शन करने के लिए लोग अंदर जाते हैं.

रात एक बजे के बाद ही तीनों दोस्त मंदिर गेट पर पहुंचे तो बताया गया कि अपने कपड़े उतार कर धोती पहननी है. प्रसाद वाली दुकान पर धोती मिली, उसे पहना गया. इस के बाद मंदिर के अंदर प्रवेश मिला वहां देखा तो पता चला कि उस हौल में पहले से ही सौ से दो सौ के करीब लोग मौजूद हैं. अब लाइन लग गई. 3 बजे से लगी लाइन में खड़ेखड़े करीब 2 घंटे बीते होंगे.

5 बजे के करीब उस हौल में बैठने का मौका मिला जहां से आरती और शृंगार को देखा जा सकता था. वह हौल सिनेमाघर जैसा बना था जहां आगे वाले करीब से देख रहे थे और पीछे वाले दूर से भीड़ भी बढ़ती जा रही थी. हौल में टीवी स्क्रीन भी लगे थे. जिन पर पूजा और शृंगार को देखा जा सकता था. 6 बजे शुरू हुई पूजा एक घंटे तक चलती रही. इस के बाद ही हौल से बाहर निकलने को मिला. मंदिर परिसर में तमाम और छोटेछोटे मंदिर हैं, जिन के महत्त्व वहां लिखे थे. ऐसे में एक के बाद एक मंदिर में दर्शन किए गए. रात से अभी तक सुकून नहीं मिला था.

उज्जैन मंदिर के बाहर निकल कर प्रसाद वाली दुकान में ही कपड़े बदले गए. इस के बाद चायनाश्ता कर के सोच रहे थे कि अब धर्मशाला चला जाए, तभी एकदो लोगों से बात हुई तो पता चला कि महाकाल के दर्शन करने के बाद काल भैरव के दर्शन जरूरी होते हैं. किराए पर एक औटो रिकशा ले कर काल भैरव गए तो रास्ते में बातों में यह पता चला कि उज्जैन में एक के बाद एक कई मंदिर हैं. ऐसे में सब का दर्शन जरूरी होता है. दोपहर इन मंदिरों के दर्शन में बीत गई. शरीर पूरी तरह से थक चुका था. खाना खाने की ताकत भी शरीर में नहीं थी.

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