सर्दी का मौसम शुरू होते ही देश की राजधानी दिल्ली प्रदूषण से बेहाल हो जाती है. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान धान की कटाई के बाद उन की जड़ों को खोद कर निकालने की जगह पर उन को जलाने का काम करते हैं. धान के इन बचे सूखे पौधों को ही पराली कहा जाता है. किसान धान की कटाई मशीनों से करते हैं. मशीन धान के पौधे को 6 इंच ऊपर से काट लेती है. 6 इंच के ये सूखे धान के पौधे खेत में बच जाते हैं. इन को एकएक कर खोद कर निकालना महंगा पड़ता है. ऐसे में किसान इन को जला देता है. इन का धुआं दिल्ली की सेहत को खराब कर देता है.
इस वक्त सर्दी का मौसम होता है, इस कारण पराली का धुआं ऊपर नहीं जा पाता. इस के अलावा दीवाली भी इसी दौरान होती है जिस में पटाखों का खूब प्रयोग किया जाता है. कई बार लोग सर्दी से बचने के लिए खराब प्लास्टिक टायर भी जलाते हैं. इन सब का मिलाजुला प्रभाव दिल्ली वालों की सेहत को बिगाड़ देता है, जिस वजह से दिल्ली दिल वालों की जगह प्रदूषण वालों की नगरी होती जा रही है.
इस प्रदूषण की वजह से लोगों की तकलीफें काफी बढ़ गई हैं, खासकर उन लोगों के लिए दिल्ली बेहद खतरनाक हो जाती है जिन को श्वास संबंधी किसी भी तरह की दिक्कत होती है.
यूपीए की चेयरपर्सन और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को डाक्टरों की सलाह पर प्रदूषण से बचने के लिए दिल्ली छोड़ कर जयपुर जाना पड़ा. हवा में प्रदूषण का प्रभाव सभी पर पड़ता है. जिन लोगों को श्वास संबंधी दिक्कतें होती हैं उन के सामने खतरे बढ़ जाते हैं. इस की वजह यह होती है कि औक्सीजन की कमी और धुएं का लंग्स यानी फेफड़ों पर असर पड़ता है. फेफड़ों की सेहत खराब होती है, जिस से शरीर को सही तरह से औक्सीजन नहीं मिल पाती है. सांस लेने की दिक्कत हो जाती है. कई बार यह जानलेवा हो जाता है. यही वजह है कि लोगों को इस तरह के वातावरण में रहने से मना किया जाता है.
जीवन पर खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट तक इस पर गंभीर है. दिल्ली सरकार को नकली बारिश करानी पड़ी. प्रदूषण को रोकने के लिए कई तरह के फैसले दिल्ली में लेने पड़े. इस के बाद भी श्वास संबंधी रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में जरूरी है कि हम फेफड़ों के महत्त्व को समझें और उन को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी उपाय करें.
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