धर्म बहुत बड़ी राजनीतिक शक्ति है। या अब राजनीति बहुत बड़ी धार्मिक शक्ति हो गई, यह तय कर पाना कभी कोई मुश्किल काम नहीं रहा. 3 दिसंबर को आए 5 में से 4 राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे खास इस धारणा की पुष्टि करते हैं. नतीजों के बाद हार और जीत का विश्लेषण करना ज्यादा आसान काम होता है.
नतीजों में हिंदी पट्टी के 3 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तमाम अनुमानों को पीछे छोड़ते हुए भारतीय जनता पार्टी अप्रत्याशित तरीके से बाजी मार ले गई और सकते में पड़े कांग्रेसी व सियासी पंडित गिनाते रह गए कि दरअसल भाजपा का संगठन बूथ लैवल तक मजबूत था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटियों पर लोगों ने भरोसा किया और कांग्रेस हवाहवाई राजनीति करती रही.
इन में से तीसरी वजह सियासी तौर पर हकीकत के ज्यादा नजदीक लगती है लेकिन इसे बारीकी से अभी भी कम ही लोग समझ पा रहे हैं. चुनाव किस या किन मुद्दों पर लड़ा गया जिन के चलते वोटिंग के आखिरी दिनों में जीत भाजपा की झोली में जा गिरी, इस के लिए एक सनातनी संत राम भद्राचार्य का चुनाव के पहले दिया एक बयान काफी अहम है जिस में उन्होंने कहा था कि यह चुनाव धर्म की लड़ाई है जिस में भाजपा जीतेगी.
जगतगुरु के खिताब से नवाज दिए गए राम भद्राचार्य जन्मांध हैं जिन की दूरदृष्टि का कायल हर कोई रहता है. वे कई भाषाओं के जानकार हैं. वे निहायत ही लुभावने और पेशेवर अंदाज में भागवत और रामकथा बांचते हैं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह कि वे राम मंदिर मुकदमे के अहम गवाह हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की इस शंका को सनातनी धर्मग्रंथों के हवाले से दूर किया था कि राम दरअसल उसी स्थान पर जन्मे थे जिसे उन की जन्मभूमि बताया जा रहा है.
धर्म का कार्ड और मोदी
Esta historia es de la edición December Second 2023 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor ? Conectar
Esta historia es de la edición December Second 2023 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor? Conectar
कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
बौलीवुड के हालात अब बदतर होते जा रहे हैं. फिल्में पूरी तरह से कौर्पोरेट के हाथों में हैं जहां स्क्रिप्ट, कलाकार, लेखक व दर्शक गौण हो गए हैं और मार्केट पहले स्थान पर है. यह कहना शायद गलत न होगा कि अब बौलीवुड कंगाली और गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है.
बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बरताव करें
अकसर अपने बीमार परिजनों से मिलने जाते समय लोग ऐसी हरकतें कर या बातें कह देते हैं जिस से सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी हो जाती है और माहौल खराब हो जाता है. जानिए ऐसे मौके पर सही बरताव करने का तरीका.
उतरन
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
युवतियां ब्रेकअप से कैसे उबरें
ब्रेकअप के बाद सब का अपना अलग हीलिंग प्रोसैस होता है लेकिन खुद से प्यार करना और समय देना सब से जरूरी होता है.
इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्ट करना ठीक नहीं
जिन परिवारों में इकलौता बच्चा होता है वे बच्चे की सुरक्षा के प्रति बहुत सजग रहते हैं. उसे हर वक्त अपनी निगरानी में रखते हैं. लेकिन बच्चे की अत्यधिक सुरक्षा उस के भविष्य और कैरियर को तबाह कर सकती है.
मेले मामा चाचू बूआ की शादी में जलूल आना
शादी कार्ड में जिन के द्वारा लिखवाया गया होता है कि 'मेले मामा/चाचू की शादी में जलूल आना' उन प्यारेप्यारे बच्चों के लिए सब से बड़ी सजा हो जाती है कि वे देररात तक जाग सकते नहीं.
गलत हैं नायडू स्टालिन औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं
महिलाएं बड़ी बड़ी बाधाएं पार कर उस मुकाम पर पहुंची हैं जहां उन का अपना अलग अस्तित्व, पहचान और स्वाभिमान वगैरह होते हैं. ऐसा आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार के बनाए कानूनों के अलावा शिक्षा और जागरूकता के चलते संभव हो पाया. महिलाओं ने अब इस बात से साफ इनकार कर दिया कि वे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बने रहना चाहती हैं.
सांई बाबा विवाद दानदक्षिणा का चक्कर
वाराणसी के हिंदू मंदिरों से सांईं बाबा की मूर्तियों को हटाने की सनातनी मुहिम फुस हो कर रह गई है तो इस की अहम वजह यह है कि हिंदू ही इस मसले पर दोफाड़ हैं. लेकिन इस से भी बड़ी वजह पंडेपुजारियों का इस में ज्यादा दिलचस्पी न लेना रही क्योंकि उन की दक्षिणा मारी जा रही थी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा भाग-5
1990 के बाद का दौर भारत में भारी उथलपुथल भरा रहा. एक तरफ नई आर्थिक नीतियों ने कौर्पोरेट को नई जान दी, दूसरी तरफ धर्म का बोलबाला अपनी ऊंचाइयों पर था. धार्मिक और आर्थिक इन बदलावों ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया, जिस का असर संसद पर भी पड़ा.
न्याय की मूरत सूरत बदली क्या सीरत भी बदलेगी
भावनात्मक तौर पर 'न्याय की देवी' के भाव बदलने की सीजेआई की कोशिश अच्छी है, लेकिन व्यवहार में इस देश में निष्पक्ष और त्वरित न्याय मिलने व कानून के प्रभावी अनुपालन की कहानी बहुत आश्वस्त करने वाली नहीं है.