भारत रत्न पुरस्कारों के एवज में राजनीतिक बंदरबांट
Sarita|February Second 2024
भारत रत्न अब प्रदान नहीं किया जा रहा बल्कि बांटा जा रहा है जिस से इस का महत्त्व खत्म हो रहा है. आम लोगों की दिलचस्पी भी इस से कम हो रही है. इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान को दिए जाने के कोई पैरामीटर्स भी नहीं हैं, इसलिए भी इस का औचित्य खत्म हो रहा है.
भारत भूषण
भारत रत्न पुरस्कारों के एवज में राजनीतिक बंदरबांट

दिग्गज भाजपा नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न देने पर उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया नहीं हुई. विपक्ष के तमाम नेता ईडी से बचने के जुगाड़ और के भागादौड़ी में लगे हैं. ऐसे में वे इस फैसले पर प्रतिक्रियाहीन बने रहने में ही अपना भला महसूस कर रहे हैं. लेकिन जिस जनता के बिहाफ पर भारत रत्न और पद्म पुरस्कार सहित दूसरे छोटेबड़े सरकारी पुरस्कार व सम्मान दिए जाते हैं उस जनता के दिलोदिमाग पर भी भारत रत्न के ऐलान का कोई खास असर नहीं हुआ.

इस घोषणा के 11 दिनों पहले जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई थी तब जरूर थोड़ी हलचल हुई थी. लेकिन अधिकतर लोगों को खासतौर से युवाओं के जेहन में यह सवाल आया था कि अब ये कर्पूरी ठाकुर कौन हैं और इन्होंने देश के लिए ऐसा क्या किया है कि उन्हें यह सब से बड़ा सम्मान प्रदान किया जा रहा है.

यह घोषणा बिहार और उत्तर प्रदेश के समाजवादी दलों और कुछ पिछड़ों को ही थोड़ी रास आई थी लेकिन लालकृष्ण आडवाणी के बारे में गिनाने के लिए हिंदूवादियों के पास इतना ही है कि उन की कोशिशों के चलते राममंदिर बन पाया और देश हिंदू राष्ट्र होने की तरफ बढ़ रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पुरस्कार को देने की घोषणा के साथ वजह बताने की कोशिश भी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक्स पर की थी कि एल के आडवाणी का देश के विकास में अहम योगदान रहा है. यह योगदान क्या था, किसी की समझ नहीं आया, न ही इस बाबत नरेंद्र मोदी ने कोई उदाहरण पेश किया.

इस से आम लोग भी असमंजस में दिखे जिन्हें यह रटा पड़ा है कि वे 80-90 के दशक में भाजपा और राममंदिर आंदोलन के पोस्टरबौय थे. विश्वनाथ प्रताप सिंह की मंडल राजनीति की काट उन्होंने कमंडल की राजनीति से की थी जिस के एवज में आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं. भगवा राजनीति में आडवाणी को मोदी का गुरु माना जाता है। क्योंकि गोधरा कांड के बाद उन्होंने ही मोदी की पीठ थपथपाई थी जबकि भाजपा के दूसरे दिग्गज प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी तो मोदी को राजधर्म की याद दिला रहे थे.

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