राज्यसभा चुनावों में फिल्म अभिनेत्री व राजनेता जया बच्चन चर्चा में हैं. जया बच्चन को समाजवादी पार्टी 5वीं बार राज्यसभा भेज रही है. इस बात को ले कर समाजवादी पार्टी में कलह शुरू हो गई है. फिल्मों से राजनीति में आए उत्तर भारत के कलाकारों में बड़ी संख्या ऐसे कलाकारों की है जो सीधे चुनाव लड़ कर संसद में पहुंचने की फिराक में रहते हैं. दूसरी बात यह कि राजनीति में पहुंच कर भी वे फकत तमाशाई रहते हैं. इस के उलट, दक्षिण भारत के फिल्म कलाकार सक्रिय राजनीति करते हैं. फिल्मी कलाकारों के पास पैसा और शोहरत दोनों होती है. वे चाहें तो राजनीति के जरिए समाज को बहुतकुछ दे सकते हैं.
फिल्मों में एक हीरो दर्जनों विलेन को एक मुक्के से धूल चटा देता है लेकिन वह राजनीति में अपनी उस ताकत को नहीं दिखाता हीरो से नेता बने ज्यादातर कलाकार राजनीति से पलायन कर जाते हैं या राजनीति में रहते हुए महज तमाशाई बने रहते हैं. ये एम जी रामचंद्रन, जयललिता, एन टी रामाराव, कमल हासन और रजनीकांत की तरह राजनीति में अपनी छाप छोड़ने में असफल रहते हैं.
फिल्मी हीरो को चाहिए कि वे राजनीति में आएं और उस के जरिए समाज को कुछ दें. समाज ही इन लोगों को पैसा और शोहरत दोनों देता है. इन के आने से राजनीति के चेहरे में सुधार भी आएगा.
फिल्म और राजनीति का रिश्ता
फिल्मों में काम करते हुए राजनीति में कदम रखने वाले कलाकारों की लिस्ट लंबी है. इन कलाकारों ने जो दम फिल्मों में दिखाया वैसा दमदार प्रभाव राजनीति में दिखाने में सफल नहीं रहे हैं. इस से उन की परदे की नकली छवि का पता चलता है. परदे पर हीरो दिखने वाले ये कलाकार राजनीति में जीरो साबित होते हैं. राजेश खन्ना सुपरस्टार थे. एक के बाद 15 हिट फिल्में दी थीं. उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत फिल्म 'आखिरी खत' से की थी. यह फिल्म 1966 में रिलीज हुई थी. उस के बाद उन्होंने 166 फिल्मों में बेहतरीन काम किया.
Esta historia es de la edición March First 2024 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor ? Conectar
Esta historia es de la edición March First 2024 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor? Conectar
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.