धर्म और सब्सिडी के शहद में डूबता बौलीवुड
Sarita|May First 2024
हाल के कुछ सालों में धर्म और सत्ता के पक्ष में धड़ाधड़ फिल्में बनीं. इन फिल्मों ने कमाई भले नहीं की लेकिन समाज को बांटने व सत्ताधारी पार्टी को चुनावी फायदा पहुंचाने की भरसक कोशिश की. इन फिल्मों को सरकार से सब्सिडी ही नहीं मिली बल्कि कई मौकों पर सत्ता पर काबिज राजनेताओं इन का सीधा प्रचार भी किया. सरकार के सीधे दखल से बौलीवुड ने राजनीतिक प्रचार तो किया लेकिन वह पूरी तरह बरबाद होने की कगार पर पहुंच गया है.
भारत भूषण और शांतिस्वरूप त्रिपाठी
धर्म और सब्सिडी के शहद में डूबता बौलीवुड

सिनेमा के विकास के लिए असल में तो दर्शक चाहिए होते हैं लेकिन यदि लोकाश्रय न मिल रहा हो और फिल्में केवल राजाश्रय मिलने वाले शहद पर बनें तो चिपचिप कर छत्तों में मर जाएंगी.

पहले कुछ फिल्मकार सरकार से धन ले कर अच्छी फिल्में भी बनाते रहे हैं मगर ऐसा करते समय कहीं न कहीं वे फिल्में एक खास विचारधारा की पोषक होती हैं, जिन से सिनेमा व समाज दोनों का नुकसान होता है. यह सत्य है कि सब्सिडी के नाम पर सरकार जो धन देती थी उस के पीछे उस की अपनी एक सोच तो रहती थी पर वह ज्यादा ढोलबजाऊ नहीं थी. राजाश्रय के बल पर बनने वाली तमाम फिल्मों को दर्शक सिरे से नकार रहे हैं.

ऐसी फिल्मों को नकारे जाने के बाद भी इस तरह की फिल्में धड़ल्ले से बन रहीं हैं और हर चुनावी मौसम में प्रदर्शित भी हो रही हैं. आम चुनाव की तैयारियां सिर्फ चुनाव आयोग या राजनीतिक पार्टियां ही नहीं करतीं बल्कि फिल्म इंडस्ट्री भी करती है. ये तैयारियां पिछले 3 वर्षों से जोरों पर थीं जिस के परिणामस्वरूप इस साल कोई दर्जनभर ऐसी हिंदी फिल्में बौलीवुड से रिलीज हुईं जो खालिस राजनीति पर आधारित थीं. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही सिनेमा का भी कट्टर धर्मपंथियों की गिरफ्त में जाना कतई हैरानी की बात नहीं है बल्कि ऐसा न होता तो जरूर हैरानी होती क्योंकि वे प्रचार का कोई जरिया नहीं छोड़ते.

आम चुनाव पर राजनीतिक फिल्मों के प्रभाव को आंकने व नापने के लिए हालांकि थोड़ा पीछे झांकना जरूरी है कि वे फिल्में राजनीतिक नेताओं और सरकार से आम लोगों के मन की बात कैसे खूबसूरती से कह जाती थीं कि कोई फसाद या विवाद खड़ा नहीं होता था, लेकिन उस से पहले एक झलक हालिया प्रदर्शित फिल्मों की देखें तो लगता है कि हिंदुत्व पर बनी अधिकतर फिल्में फ्लॉप भले ही रही हों लेकिन उन के पीछे एक एजेंडा है और एक बड़ा प्रोपगंडा भी.

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