एक तरफ बौलीवुड फिल्में बौक्स ऑफिस पर असफलता के रिकौर्ड बनाते हुए कलाकारों को नकारा साबित करती जा रही हैं तो दूसरी तरफ फिल्मी आयोजनों (फिल्म का टीजर लौंच, ट्रेलर लौंच, गाना लौंच, प्रैस शो आदि) में कलाकारों के स्टारडम को बरकरार रहने का एहसास कराने के लिए फिल्म व कलाकार की प्रचार टीमें, मार्केटिंग एजेंसियां और अभिनेता बेहिसाब हेराफेरी कर रहे हैं.
एक तरफ फिल्मों की असफलता के चलते सिनेमा उद्योग लगातार नुकसान के गर्त में डूबता जा रहा है तो वहीं कलाकार दर्शकों को मूर्ख बनाने और अपने स्टारडम पर खरोंच न आने का संदेश देने के लिए अपनी जेब से अनापशनाप पैसे खर्च कर हर इवेंट के लिए पैसे से खरीदे हुए फैंस की भीड़ जुटा रहे हैं.
यह बौलीवुड का ऐसा कड़वा सच है जिस ने वर्तमान बेरोजगार युवा पीढ़ी के लिए 'नकली फैंस' का एक नया पेशा उपलब्ध करा दिया है. मुंबई के फिल्मी इवेंट में अकसर देखने को मिलता है कि खचाखच भरे हौल में पत्रकार कम, कलाकार के फैंस ज्यादा मौजूद रहते हैं, जिन के हाथ में कुछ पोस्टर व सीटियां रहती हैं. कार्यक्रम के दौरान वे ईमानदारी से ताली बजाते हैं, हंसते हैं, सीटी भी बजाते हैं. ऊब होने पर भी वे 'चिअर अप' करने से पीछे नहीं रहते.
कार्यक्रम खत्म होते ही हौल से बाहर निकल कर अपने 'मुकादम' को सीटी व पोस्टर पकड़ा कर इन में से आधे से अधिक लोग अगले कार्यक्रम में चले जाते हैं, दूसरे फिल्मी इवेंट में वे नई टीशर्ट पहने व हाथ में नया पोस्टर लिए नजर आते हैं. फिर कलाकार के नजर आते ही वे ढोल पर नाचना शुरू कर देते हैं. बेचारे पत्रकार यही सारा तमाशा देखते रहते हैं. यूट्यूबर इन का वीडियो बना कर पोस्ट करते हैं, कलाकार की पीआर टीम अपनी तरफ से वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर प्रचारित करती है कि फलां कलाकार का क्रेज देखिए. जबकि ये सारे फैंस नकली यानी कि पैसे दे कर बुलाए गए होते हैं. बेचारा दर्शक इसे सच मान बैठता है और अपनी गाड़ी कमाई ऐसे कलाकारों की घटिया फिल्मों पर खर्च करता रहता है.
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