क्यों फीकी हो रही फिल्मी और आम लोगों की दीवाली
Sarita|October Second 2024
फिल्मों की दीवाली अब पहले जैसी नहीं रही. दीवाली का त्योहार अब बड़े बजट की फिल्मों के लिए कलैक्शन का दिन भी नहीं रहा. इस मौके पर फिल्में आती तो हैं लेकिन बुरी तरह पिट जाती हैं. फिल्मी हस्तियों व आम लोगों के लिए दीवाली फीकी होती जा रही है.
शांतिस्वरूप त्रिपाठी
क्यों फीकी हो रही फिल्मी और आम लोगों की दीवाली

दीवाली रोशनी व मिठाई का त्योहार है. मुंह मीठा करने व खुशी व्यक्त करने का त्योहार है. बौलीवुड की फिल्मों में दीवाली के त्योहार को बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं दिया गया. इस त्योहार का चित्रण करते हुए बस धार्मिक पूजापाठ ही दिखाया गया. कुछ फिल्मों में घर को रोशन करने के अलावा पटाखे फोड़ने को अहमियत दी गई, मगर पटाखों से हमेशा दुर्घटना ही दिखाई गई क्योंकि बौलीवुड के फिल्मकारों की नजर में यह ऐसा त्योहार है जिस में उन्हें नाटकीयता लाने का अवसर कम मिलता है. बौलीवुड फिल्मों में तो होली, करवाचौथ, गणेशोत्सव व नवरात्रोत्सव का जरूरत से ज्यादा चित्रण व महिमामंडन ही नहीं बल्कि इन त्योहारों को अतिभव्यता के साथ पेश किया जाता रहा है.

बौलीवुड के लिए दीवाली का त्योहार हमेशा पारिवारिक पुनर्मिलन का त्योहार व मुंह मीठा करने या यों कहें कि मिठाई बांटने का त्योहार ही रहा. मसलन, साल 2000 में प्रदर्शित फिल्म 'कभी खुशी कभी गम' दीवाली की छुट्टियों के दौरान घर लौट कर लड्डुओं का स्वाद लेने और परिवार की गर्मजोशी को गले लगाने की भावना को खूबसूरती से दर्शाती है, जो रायचंद परिवार के असाधारण उत्सवों की याद दिलाता है. यह अलग बात है कि आम जीवन में दीवाली के उत्सव में रायचंदों जैसी भव्यता के दर्शन नहीं होते. दीवाली के दौरान प्रियजनों के साथ पुनर्मिलन की भावना घर से दूर रहने वाले हम में से कई लोगों के साथ गूंजती है.

यों तो फिल्म 'कभी खुशी कभी गम' में मुख्य रूप से जया बच्चन और शाहरुख खान यानी कि मांबेटे के बीच त्योहार को दिखाया गया है, लेकिन यह प्रतिष्ठित दीवाली दृश्य हर सिनेप्रेमी के दिल में बसा हुआ है. 'कभी खुशी कभी गम' वर्ष 2001 की आखिरी फिल्म थी, जिस का मुख्य कथानक रोशनी के त्योहार पर केंद्रित था.

'कभी खुशी कभी गम' से पहले संजय दत्त, महेश मांजरेकर निर्देशित 1999 की फिल्म 'वास्तव' में दीवाली पर घरवापसी दिखाई गई है. उस में खूंखार गैंगस्टर रघु (संजय दत्त) है जो अपने परिवार के साथ दीवाली मनाने के लिए जबरन अपने ठिकाने से हर वर्ष निकलता है, जबकि उस का परिवार ऐसा नहीं चाहता पर रघु (संजय दत्त) को अपनी मां (रीमा लागू) से मिलना होता है.

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