बिहार में राजनीतिक संकट के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नई राह पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियों ने सोमवार को कहा कि वह नीतीश और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड को गले लगाने को तैयार है, बशर्ते वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का साथ छोड़ दे। कांग्रेस और वामदलों ने भी सोमवार को संकेत दिया कि अगर ऐसा होता है तो वे इसका समर्थन करेंगे। इसके साथ ही कयास लगाए जा रहे हैं कि जदयू और भाजपा के बीच कुछ समय से चल रही खींचतान अब अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है। नीतीश ने जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद उत्पन्न हालात पर चर्चा के लिए मंगलवार को पार्टी के विधायकों और सांसदों की बैठक बुलाई है। अहम बैठक से एक दिन पहले जदयू ने सोमवार को कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जो भी फैसला लिया जाएगा, वह पूरे संगठन को स्वीकार्य होगा।
कुछ दिन पहले ही भाजपा ने पटना में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की और इसमें घोषणा की गई कि उसने 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में जद (यू) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस घोषणा में यह भी संदेश दिया गया कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। सोमवार को भाजपा ने अपना मजबूत रुख दिखाने की कोशिश की लेकिन यह स्पष्ट था कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है और रिश्ते में कड़वाहट कुछ ज्यादा बढ़ गई है। इसकी तात्कालिक वजह केंद्रीय मंत्रिमंडल में जद (यू) के प्रतिनिधि के तौर पर मंत्री बने आरसीपी सिंह द्वारा उठाए गए कदम थे। आरसीपी सिंह भाजपा के कुछ अधिक करीब आ गए जो संभवतः जद (यू) के शीर्ष नेतृत्व को नहीं भाया।
इस वक्त राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सभी 79 विधायकों को पटना आने के लिए कहा गया है। जद (यू) सांसदों और विधायकों को भी मंगलवार को बैठक के लिए बुलाया गया है।
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