हाल में करीब 13,000 करोड़ रुपये की लागत से बनी तीस्ता-3 पनबिजली परियोजना का 60 मीटर ऊंचा बांध महज 10 सेकंड में अचानक आए बाढ़ के पानी में पूरी तरह बह गया। यह बाढ़ दक्षिण लोनक हिमनद झील में बादल फटने की वजह से आई। दिलचस्प बात यह है कि इस परियोजना का काम पूरा होने में दो दशक लग गए और यह निजी कंपनियों के हाथों से राज्य सरकार के जिम्मे आई और अब इस पर सार्वजनिक-निजी संयुक्त उद्यम का ठप्पा है। फिलहाल इसका भविष्य अनिश्चित है और इसकी व्यवहार्यता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
इस घटना से सिक्किम के आसपास के हिमनद क्षेत्रों के पारितंत्र की संवेदनशीलता, मौसम में तीव्र बदलाव से जुड़ी घटनाओं की आशंका, बुनियादी ढांचे का तेजी से निर्माण और जलवायु अनुकूल प्रयासों की कमी के विषय में भी बड़े सवाल उभरे हैं।
तीस्ता नदी राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-10) 10 के कुछ हिस्सों को भी बहा ले गई है, जिससे गंगटोक और सिक्किम के बाकी हिस्से से शेष देश का संपर्क प्रभावित हुआ है। एनएच-10 पिछले महीने भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ में पहले ही क्षतिग्रस्त हो चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कम से कम 14 पुल ढह गए हैं।
इस घटना की मुख्य वजह हिमनद झील पर बादल फटने से आई अचानक बाढ़ बताई जा रही है। दक्षिण लोनक झील सिक्किम के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में समुद्र तल से 17,000 फुट की ऊंचाई पर है।
लोनक हिमनद के पिघलने से बनने वाली झील को भूवैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने पहले ही अतिसंवेदनशील बताया था और इसे खतरनाक झीलों में से एक माना जाता है। हिमनद वाले झील पर बादल फटने से अचानक बाढ़ (जीएलओएफ) वाली आपदाजनक स्थिति बनती है। ऐसा इस वजह से होता है क्योंकि प्राकृतिक रूप से बने हिम की दीवारें झील के पानी को नहीं रोक सकती हैं। ऐसी बाढ़ की स्थिति कई कारणों से देखी जा सकती है चाहे वह भूकंप हो या भूस्खलन की स्थिति हो।
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आरईसी की फिर बॉन्ड से धन जुटाने की तैयारी
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बढ सकता है एथनॉल का खरीद भाव
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