छात्र परेशान
■ आम तौर पर नवंबर तक प्लेसमेंट पूरा हो जाता था मगर इस बार यह अगले वित्त वर्ष तक खिंच सकता है
■ पिछले साल इंजीनियरिंग के छात्रों को ऑफर लेटर देने वाली कंपनियों ने अभी तक जॉइन नहीं कराया है
■ अमेरिका के आईटी क्षेत्र में भी नौकरी की कमी और छंटनी
कैलिफोर्निया के सैन डिएगो में कंप्यूटर साइंस में परास्नातक कर रहे अभिषेक जाधव (नाम बदला हुआ) को भविष्य की बहुत फिक्र हो रही है। तकनीकी क्षेत्र में नौकरियों की किल्लत और अमेरिका में भारी छंटनी को देखते हुए उनकी और दूसरे छात्रों की चिंता जायज भी है।
जाधव ने कहा, ‘मुझे उम्मीद थी कि परास्नातक के बाद मुझे पसंदीदा कंपनी में नौकरी मिल जाएगी। मगर अब मेरा एक ही मकसद है – पढ़ाई खत्म करने से पहले एक अदद नौकरी तलाश लेना।’ जाधव की तरह कई प्रवासी छात्रों को तो किसी कंपनी में इंटर्नशिप पाना भी मुश्किल हो रहा है।
उन्होंने कहा, ‘यह वाकई मायूसी वाली बात है। पिछले साल के बैच को यह दिक्कत नहीं थी। मैं नौकरी करने भारत भी नहीं जा सकता क्योंकि वहां जितना वेतन मिलेगा उसमें तो शिक्षा ऋण चुकाने में ही कई साल लग जाएंगे।’
जाधव ने अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए अपना पुश्तैनी मकान गिरवी रखकर भारी कर्ज लिया है। जावध जिस समस्या से जूझ रहे हैं, वह अमेरिका में पढ़ाई करने वालों के साथ ही नहीं है। भारत में भी हाल ऐसा ही है। यहां पढ़ाई पूरी कर प्लेसमेंट का इंतजार कर रहे छात्र भी ऊहापोह में फंसे हैं क्योंकि बड़े पैमाने पर भर्तियों के लिए कॉलेज परिसर आने वाली देसी सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियां इस बार कॉलेजों में आई ही नहीं हैं।
इंजीनियरिंग के चौथे वर्ष के छात्र पारस खिलोसिया ने बताया, ‘हमारे प्लेसमेंट सेल ने कहा है कि जो भी नौकरी मिले, ले लो।’ उन्होंने कहा कि आम तौर पर प्लेसमेंट अक्टूबर-नवंबर में तकरीबन पूरा हो जाता था, लेकिन इस बार देर हो रही है और कई दफा टल चुका प्लेसमेंट अगले साल की पहली तिमाही तक धकेला जा सकता है।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) और इन्फोसिस जैसी बड़ी कंपनियां परिसर में नहीं आईं। पारस के ज्यादातर दोस्त उच्च शिक्षा लेने या कैंपस से इतर नौकरियां तलाशने की योजना बना रहे हैं।
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