अधिक क्षमता और अत्यधिक मछली पकड़ने पर अंकुश के लिए सब्सिडी कम करने, खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक भंडारण को लेकर मतभेद बना रहा, जो भारत की प्राथमिकता में शामिल था। मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का कोई परिणाम नहीं आया, वहीं देशों ने 2024 के अंत तक पूरी तरह से काम करने वाले और सभी सदस्यों के लिए सुलभ विवाद निपटान प्रणाली बनाने का फैसला किया है।
अनाज के भंडारण के मसले पर भारत की मांग का कोई परिणाम नहीं निकला है, वहीं वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि वह परिणामों से संतुष्ट हैं, क्योंकि भारत किसानों के लाभ के लिए नीतियां बनाने में पूरी तरह सक्षम है।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने एमसी-13 के परिणामों और भारत के लिए प्रमुख फायदों या विफलताओं पर नजर डाली है।
कृषि
भारत क्या चाहता था: भारत व अन्य विकासशील देश चाहते थे कि सार्वजनिक भंडारण का स्थायी समाधान हो, जिसमें सरकार अनाज खरीदती है और घरेलू खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्यान्न वितरण करती है। तमाम कृषि मसलों में यह भारत की प्राथमिकता में था। परिणामः कृषि को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ। देशों के बीच मतभेद इतने अधिक थे कि हल नहीं हो सके।
यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों का मानना है कि अगर उत्पादकों को कीमत का समर्थन देने के लिए सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रम चलाया जाता है तो इससे अन्य देशों की खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
भारत के लिए क्या है इसका मतलबः 'शांति प्रावधान' के लाभ के कारण भारत के लिए कोई खतरा नहीं है। प्रावधान के कारण विकासशील देश सब्सिडी या गरीबों को मुफ्त अनाज देने पर भी कानूनी चुनौती से बच सकते हैं।
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