केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को आगामी आम बजट पेश करने में अब छह हफ्ते से भी कम समय रह गया है। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए उन्हें क्या करना चाहिए, इसकी अपेक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं। कई औद्योगिक संगठन और उद्योग के अगुआ उम्मीद कर रहे हैं कि वह खजाने को मजबूत करने का काम आगे बढ़ाएँगी और आर्थिक वृद्धि को सहारा देने वाले उपाय भी करेंगी। लेकिन इन सभी अपेक्षाओं पर बारीकी से नज़र डालने से पहले सीतारमण के आगामी बजट को इतिहास के नज़रिये से देखना बेहतर होगा।
यह उनका लगातार सातवाँ पूर्ण बजट होगा, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। देश में किसी अन्य वित्त मंत्री ने लगातार सात आम बजट पेश नहीं किए हैं। अगला बजट पेश करते ही वह चिंतामन देशमुख को पीछे छोड़ देंगी, जिन्होंने 1950 के दशक में लगातार छह बजट पेश किए थे। अलबत्ता कुल पूर्ण बजट पेश करने के मामले में वह अब भी मोरारजी देसाई और पी चिदंबरम से पीछे रहेंगी। मोरारजी ने बतौर वित्त मंत्री दो अलग-अलग कार्यकालों में कुल आठ बजट पेश किए थे और चिदंबरम ने तीन अलग-अलग कार्यकालों में आठ बजट पेश किए थे। स्त्री-पुरुष के नज़रिये से देखें तो सीतारमण सबसे लंबे समय तक वित्त मंत्री रहने वाली महिला बन चुकी हैं और वित्त मंत्री रही इंदिरा गांधी को बहुत पीछे छोड़ चुकी हैं।
अब सीतारमण के सातवें बजट से क्या उम्मीद की जानी चाहिए? यह कई तरह से अस्वाभाविक बजट होगा क्योंकि इसका आकलन इस बात पर भी होगा कि उन्होंने पिछले बजट के नीतिगत वादों को निभाने के लिए क्या-क्या किया? 2024-25 के बजट में वह न केवल राजकोषीय समेकन और लेखा पारदर्शिता के अपने वादे पर खरी उतरीं बल्कि उन्होंने चार बड़े नीतिगत वादे भी किए। उन नीतिगत वादों और उनकी प्रगति की पड़ताल करने से भी आगामी बजट की दिशा समझ आ सकती है।
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