भारतीय संस्कृति में हल्दी एक महत्वपूर्ण वनस्पति है। इसे संस्कृत में हरिद्रा कहते हैं। हल्दी व्यंजनों का जायका बढ़ाने से लेकर शुभ एवं मांगलिक कार्यों तक में प्रयुक्त होती है। इसके अलावा हल्दी का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के रूप में और चिकित्सा के लिए होता है। हल्दी के चिकित्सकीय गुणों के आयुर्वेद में विविध उपयोग बताए गए हैं। हल्दी के इन चिकित्सकीय गुणों पर अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी काम करने लगा है और हल्दी में पाए जाने वाले तत्व करक्यूमिन के जरिए अनेक असाध्य रोगों का निदान किया जा रहा है।
भावप्रकाश निघण्टु में हल्दी के चिकित्सकीय गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है-
हरिद्रा कटुका तिक्ता रूक्षोष्णा कफपित्तनुत्।
वर्ण्या त्वगदोषमेहास्रशोषपाण्डुव्रणापहा॥185॥
यानी हल्दी चरपरी, कड़वी, रूखी, गर्म, कफ-पित्त, त्वचा के रोग, प्रमेह, रुधिरविकार, कोढ़ खुजली, सूजन, पाण्डुरोग और घाव एवं व्रणविनाशक है। हल्दी कृमिरोग, शीतपित्त, विषविकार और अपचन, राजयक्ष्मा आदि रोगों में भी लाभदायक है।
हल्दी में 6 प्रतिशत प्रोटीन, 3.5 प्रतिशत खनिज तत्व, 68 प्रतिशत काबोर्हाइड्रेट्स और करक्यूमिन एवं विटामिन ए पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों की तरफ से हल्दी पर किए गए शोध के अनुसार इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइन्फ्लेमेटरी, एंटीसेप्टिक, एंटीट्यूमर, एंटी कैंसर, केलोरेटिक, एंटीमाइक्रोबियल, कार्डियोप्रोटेक्टिव ( हृदय की सुरक्षा), नेफ्रोप्रोटेक्टिव (किडनी की सुरक्षा) और हेपेटोप्रोटेक्टिव (लिवर की सुरक्षा) के गुण होते हैं।
अध्ययनों से पता चला है कि एक औंस करक्यूमिन 26 प्रतिशत तक मैंगनीज और 16 प्रतिशत तक आयरन की दैनिक आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम है। करक्यूमिन पोटेशियम, विटामिन बी6, विटामिन सी, फाइबर और मैग्नीशियम का एक अद्भुत स्रोत है। हल्दी में मौजूद एक सक्रिय तत्व करक्यूमिन पृथ्वी पर उपलब्ध सबसे शक्तिशाली जड़ी-बूटी है। आज, करक्यूमिन त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाने में मदद करने के लिए मौखिक गोलियों के रूप में उपलब्ध है।
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