कौशलयुक्त हो समग्र शिक्षा
Panchjanya|September 11, 2022
प्राचीन काल में गुरुकुलों में 16 विषय और 64 कौशल आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते थे। इसलिए प्रत्येक ग्रामीण समुदाय किसी न किसी प्रकार के कौशल से संपन्न था। आज सामान्य शिक्षा सफल ज्ञान आधारित करियर के लिए उत्कृष्ट आधार होते हुए भी स्नातकों को कौशल से लैस करने में विफल है। लेकिन नई शिक्षा नीति में विषय- वस्तु सिखाने के बजाय सीखने की कला एवं बुनियादी कौशलों को प्राथमिकता दी गई है
प्रो. राघवेंद्र प्रसाद तिवारी
कौशलयुक्त हो समग्र शिक्षा

देश का युवा वर्ग 12वीं के बाद भविष्य के स्वर्णिम सपने संजोये उच्च शिक्षा के लिए महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में दाखिला लेता है। इस समय वे जीवन के उच्चतम उर्जा स्तर पर होते हैं। उन्हें सही परामर्श और उचित मार्गदर्शन से ज्ञानार्जन के प्रति उनकी रुचि बढ़ाई जा सकती है। साथ ही, समग्र शिक्षा उपलब्ध करा कर उनका संपूर्ण व्यक्तित्व विकास सुनिश्चित किया जा सकता है । यह ध्यान रखना होगा कि जब ये रोजगार के योग्य होंगे, तब उन्हें ऐसे कार्य-स्थलों का सामना करना होगा, जहां निष्पादित होने वाले कार्यों की न तो अभी कल्पना की जा सकती है और न ही उनके संपादन हेतु जिन कौशलों एवं तकनीकियों की आवश्यकता होगी, उनके बारे में सोचा जा सकता है। इसके इतर आज के युवा शिक्षा - 4.0 के युग में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जो कि पूरी तरह परिणाम आधारित है।

शिक्षा 4.0 का प्रमुख उद्देश्य औद्योगिक क्रांति 4.0 को बढ़ावा देने के लिए कौशल एवं वैश्विक क्षमतावान युवा तैयार करना भी है। इन परिस्थितियों में महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के युवाओं को शिक्षित करने की दशा एवं दिशा क्या हो, यह चिंतन का विषय है। बहुत हद तक इसका जवाब राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में निहित है। शिक्षा नीति की मुख्य चिंता वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलावों के सापेक्ष 21वीं सदी के अधिगमकर्ताओं में खास कौशलों एवं अभ्यासों का निर्माण करना है। यह शिक्षा को ऐसी सामाजिकसांस्कृतिक परियोजना के रूप में प्रस्तावित करती है, जिसमें अधिगमकर्ता देशज ज्ञान से जुड़े होने के साथ बोध की आधुनिक आलोचनात्मक तार्किकता से भी युक्त हो। इसमें विषय-वस्तु सिखाने की बजाय सीखने की कला एवं बुनियादी कौशलों को प्राथमिकता दी गई है। सीखने की यही प्रक्रिया अधिगमकर्ता को उन संभावनाओं से युक्त करेगी, जहां वह उद्यमशीलता, रोजगारकर्ता एवं कौशल के स्वायत्त व आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी का निर्माण कर सकें।

बदलावों और चुनौतियों का दौर

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