हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट की कैनॉपी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फुट ऊंची काले ग्रेनाइट की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया। साथ ही, 'कर्तव्य पथ' का भी उद्घाटन किया, जो सेंट्रल विस्टा परियोजना का एक हिस्सा है। इस वर्ष 23 जनवरी को नेताजी बोस की 125वीं जयंती को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाया गया था। वास्तव में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपनी मातृभूमि को उपनिवेशवाद की बेड़ियों से मुक्त करने के महान उद्देश्य से हेतु भारतीय उपमहाद्वीप की विविध सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक, बौद्धिक, दार्शनिक और आर्थिक पहचानों के एकीकरण का अनन्य अवसर था। स्वतंत्रता आंदोलन निर्विवाद रूप से बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों और संगठनों के लिए भारत की स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के बाद के उपक्रमों के बारे में अपने विचारों और कल्पनाओं को साझा करने का मंच भी था। अपनी-अपनी धारणाओं के बावजूद अहिंसा, सशस्त्र संघर्ष, सांस्कृतिक जागृति, सामाजिक उत्थान आदि भारत को स्वतंत्र कराने के लिए कई महान व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त कुछ तरीके थे। भारत जैसे बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक राष्ट्र में क्षेत्रीय भाषाओं में राष्ट्रवादी भावना और जोश जगाने वाला विपुल साहित्य भरा है, जिसकी गूंज ने लाखों भारतीयों को एकजुट कर सड़क पर उतारा था। स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाली महान हस्तियों के बीच ऐतिहासिक वार्ताएं हुई थीं, जिनसे विविधता के बीच वे संयुक्त रूप से जीवित सामाजिक-सांस्कृतिक इकाई के रूप में भारत की अपनी समझ को समृद्ध कर सके थे। ऐसी ही एक वार्ता वर्ष 1934 में मोहनदास करमचंद गांधी और रा.स्व.संघ के संस्थापक तथा पहले सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के बीच हुई थी।
संघ की स्थापना के नौ वर्ष बाद 25 दिसंबर 1934 को वर्धा जिला शिविर में गांधी जी का आगमन और डॉक्टर जी से उनकी बातचीत शायद राष्ट्र के लिए विशाल सामाजिक-राजनीतिक मिशन की कल्पना करने वाले दो राष्ट्रवादी दिग्गजों के बीच हुई एक दुर्लभ, विशिष्ट और रचनात्मक बातचीत है। गांधी ने भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए जहां सत्य और अहिंसा को माध्यम चुना था, वहीं डॉक्टर जी सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर राष्ट्र के पुनर्निर्माण और परिवर्तन के लिए जनता को हिंदू-सांस्कृतिक और भारतीय पहचान प्रदान करने की अत्यधिक आवश्यकता महसूस करते थे।
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शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
शिवाजी पर वामंपथी श्रद्धा!!
वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
होली का रंग तो बनारस में जमता था
होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश
आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
भक्त और भगवान का एक रंग हो जाना चरम परिणति माना जाता है और इसी चरम परिणति की याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है धरती का प्रिय पाहुन फाल्गुन। इसीलिए वसंत माधव है। राधा तत्व वह मृदु सलिला है जो चिरंतन है, प्रवाहमान है
नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
नेफ्यू रियो 5वीं बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल
त्रिपुरा और नागालैंड की जनता ने शांति, विकास और सुशासन के भाजपा के तरीके पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई है। मेघालय में भी भाजपा समर्थित सरकार बनने के पूरे आसार। कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़े, लेकिन बुरी तरह परास्त हुए और त्रिपुरा में पैर पसारने की कोशिश करने वाली तृणमूल कांग्रेस को शून्य से संतुष्ट होना पड़ा
जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
कोल्हापुर स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव का समापन 26 फरवरी को हुआ। इस सात दिवसीय लोकोत्सव में लगभग 35,00,000 लोग शामिल हुए। इन लोगों को पर्यावरण को बचाने का संकल्प दिलाया गया
नाकाम किए मिशनरी
भारत के इतिहास में पहली बार बंजारा समाज का महाकुंभ महाराष्ट्र के जलगांव जिले के गोद्री ग्राम में संपन्न हुआ। इससे पहली बार भारत और विश्व को बंजारा समाज, संस्कृति एवं इतिहास के दर्शन हुए। एक हजार से भी ज्यादा संतों और 15 लाख श्रद्धालुओं ने इसमें भाग लिया। इससे बंजारा समाज को हिन्दुओं से अलग करने और कन्वर्ट करने की मिशनरियों की साजिश नाकाम हो गई