दिसम्बर 2010 में अरब जगत में 'अरब स्प्रिंग्स' नाम से शासन के दमन के विरुद्ध एक चिनगारी भड़की थी। अरब में जलजला सा आ गया था। उसके बाद अरब के शासकों को समझ आ गया था कि जनता ठान ले तो उनकी दादागीरी नहीं टिक सकती।
आज ईरान में जो स्थिति है, उसे देखकर अनेक विशेषज्ञ यह सोचने को विवश हैं कि कहीं यह 'अरब स्प्रिंग्स' जैसा बवंडर तो नहीं? क्या शिया बहुल ईरान में 'सुप्रीम लीडर' के दिन गिनती के रह गए हैं? क्या अब इस्लामवादियों की शरियाई ठसक को लोग ढोने के लिए तैयार नहीं हैं, अब वे इसे उतार फेंकने का मन बना चुके हैं?
ईरान बेशक, उफान पर है। 16 सितम्बर, 2022 के बाद से पुलिसिया और सैन्य कार्रवाइयों, सरकार के धमकी भरे बयानों के बावजूद; सुप्रीम लीडर कहे जाने वाले सैयद अली होसैनी खामेनेई की 'बस, अब और बर्दाश्त नहीं' जैसी धमकियों के बावजूद, देश में इन दिनों एक क्रांति-सी धधक रही है। अभी तक के अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार, सैकड़ों प्रदर्शनकारी मारे जा चुके हैं, हजारों सलाखों के पीछे हैं और कुछ फांसी चढ़ाए जा चुके हैं। इनमें क्या महिलाएं, क्या पुरुष, क्या वृद्ध और क्या बच्चे ! सब सत्ता के दमन में पिसे हैं, और में न जाने कितने, कब तक पिसते, पिटते, कुचलते रहेंगे, झुलसते रहेंगे.... हिजाब से लगी आग से उपजे खामेनेई की 'शरियाई ठसक' में।
छात्रों ने थामी कमान
इस पूरे आंदोलन में एक बार फिर स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएं पूरी सरगर्मी से कमान थामे हुए हैं, उनके संबल को बनाए रखने को आम नागरिक बड़ी संख्या में आहुतियां देने को तैयार बैठे हैं। तेहरान, मश्शाद, इसफाहन, कराज से लेकर शिराज तक... हर बड़े शहर की सड़कें पिछले करीब 3 महीने से सैकड़ों, हजारों प्रदर्शनकारियों के नारों से गूंज रही हैं। 'हिजाब नहीं पहनेंगे, जो करना हो, कर लो', 'खामेनेई मुर्दाबाद', 'अब जुल्म नहीं सहेंगे', 'तानाशाहों, गद्दी छोड़ो' जैसे नारों की गूंज से ईरान का आसमान पटा पड़ा है।
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