'यह दिशा और स्वत्व पर अडिग रहने की परीक्षा है'
Panchjanya|January 15, 2023
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है। राजनीतिक प्रभाव से लेकर महिलाओं की भागीदारी तक कई विषय ऐसे हैं, जो संघ के विरुद्ध प्रचार में प्रयुक्त होते रहे हैं। युवाओं की भागीदारी, तकनीक की भूमिका, एलजीबीटी समुदाय के प्रति दृष्टिकोण, आर्थिक विषय और पर्यावरण से लेकर तमाम विषयों पर लोगों की अपेक्षा रहती है कि संघ अपनी बात रखे और उन्हें एक दिशा दे। सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत ने पाञ्चजन्य- ऑर्गनाइजर संवाद में हितेश शंकर और प्रफुल्ल केतकर के साथ नागपुर में इन विषयों पर खुलकर बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस विशेष वार्ता के कुछ महत्वपूर्ण अंश:
हितेश शंकर और प्रफुल्ल केतकर
'यह दिशा और स्वत्व पर अडिग रहने की परीक्षा है'

• कोरोना के कारण पाञ्चजन्य- ऑर्गेनाइजर का संवाद दो वर्ष टला। दो वर्ष के अंतराल में हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सौ वर्ष की यात्रा के और निकट आ गए हैं। सौ वर्ष की यात्रा पूरी करने की ओर बढ़ते हुए संघ के लिए सबसे बड़ी चुनौती कब आई, और वह चुनौती क्या है ? 

चुनौती शब्द गंभीर है। ऊबड़-खाबड़ रास्ते में कई प्रकार के मोड़ आते हैं। बाधाएं आईं, संकट आए, कठिन रास्ता था, लेकिन एक काम पूरा करना है, बस इतनी बात है। इन सारी परिस्थितियों से गुजरते हुए अपनी दिशा को कायम रखना और अपने स्वत्व को कायम रखना, यह सबसे बड़ी चुनौती होती है। जैसे, हमारा बड़ा विरोध हुआ और हमें उसका सामना करके बाहर निकलना पड़ा। लेकिन विरोध का सामना करके हमें विरोधी नहीं बनना है। कई बार परिस्थिति देखकर उसी दिशा में जाने का दूसरा रास्ता ढूंढना पड़ता है। तो उस दिशा में बढ़ने के लिए हम कुछ मोड़ लेते हैं। किस दिशा में जाना है, उसको ध्यान में रखना चाहिए। तभी उस मोड़ का फायदा होता है। नहीं तो मोड़ के साथ दिशा भी बदल जाती है। संघ की पूरी यात्रा में यह एक बात रही। बाकी सारी बातें अपेक्षानुसार ही थीं।

Esta historia es de la edición January 15, 2023 de Panchjanya.

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