![अपनी नींद के बारे में जाने कुंडली से](https://cdn.magzter.com/1382621400/1661336224/articles/w9ZFvIBjH1661422993227/1661423651502.jpg)
निद्रा सुषुप्तावस्था का दूसरा नाम है। इस अवस्था में व्यक्ति चेतनाहीन हो जाता है, उसे बाह्य संसार का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता है और न ही उसके सामने कोई काल्पनिक संसार ही रहता है। बाह्य संसार के ज्ञान की अवस्था जागृतावस्था है और काल्पनिक संसार के ज्ञान की अवस्था स्वप्न कहलाती है। तुरिया अवस्था ब्रह्म ज्ञान की होती है। यह अवस्था केवल योग साधना से प्राप्त होती है और दुर्लभ है।
जाग्रतावस्था में शक्ति का प्रवाह मस्तिष्क की और होता है, इस कारण शरीर के दूसरे अंगों को पर्याप्त शक्ति नहीं मिल पाती । निद्रावस्था में शारीरक थकान दूर होकर शरीर और मन स्वस्थ होता है।
निद्रा और स्वास्थ्य
निद्रावस्था मे मनुष्य विचारशून्य हो जाता है और उसके मस्तिष्क की प्रबल क्रियाएँ रुक-सी जाती हैं और ऐसी अवस्था में शक्ति का संचार शरीर के दूसरे अंगों की ओर होने लगता है।
पाचनक्रिया के भलि-भाँति होने के लिए विचारों का चलना बंद होना आवश्यक है। निद्रावस्था में पाचनक्रिया सुचारू रूप से होती है।
निद्रा मनुष्य के सही स्वास्थ्य की सूचक है, प्रतिदिन निर्विघ्न निद्रा होना स्वास्थ्यप्रद होता है।
आचार्य चरक ने निद्रा की सांगोपांग सुंदर विवेचना की है-
"यदा तु मनसि क्लान्ते क्लमान्विताः कर्मात्मानः ।
विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानवः ॥"
अर्थात पुरुष कर्म वृत्ति एवं उसके कारण विशेषतया मन जब थक जाता है तो बाह्य विषयों से निवृत हो जाता है और फलत: व्यक्ति सो जाता है।
वस्तुतः निद्रा व्यस्त जीवन में पूर्ण शांति प्रदान करती है। जिस प्रकार गर्भस्थ शिशु माता के घर में सब प्रकार से सुरक्षित हो कर सोता है, उसी प्रकार जीव भी अपने को सब प्रकार की उत्तेजनाओं से दूर रख कर सब प्रकार से सुरक्षित होकर शयन काल में मानव गर्भस्थ शिशु का अभिनय करता है।
हृदय अधोमुख कमल के समान है। व्यक्ति के जगे रहने पर वह विकसित होता है और सो जाने पर निमीलित हो जाता है। हृदय संपूर्ण चेतनाओं का अधिष्ठान है। उस अधिष्ठान में तमोगुण का प्रवेश होने से प्राणियों में निद्रा का प्रवेश हो जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए तो निद्रा आवश्यक है ही, अपितु निद्रा शारीरीक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है।
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पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
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ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
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गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
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सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
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अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
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सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।