शिवोपासना विश्व में भगवान् की प्राचीनतम आराधना है। शिव अनादि और शाश्वत देवता हैं। शिव के आविर्भाव का वर्णन अनेक पौराणिक ग्रन्थों तथा वैदिक वाङ्मय में मिलता है। किसी युग में स्वयंभू ज्योर्तिलिंग रूप में तो कभी अन्य रूप में भगवान् शिव का वर्णन मिलता है।
काशी की ज्योर्तिलिंग प्रतिमा स्वयंभू है। कहीं-कहीं शिव भक्त की कठोर आराधना के कारण प्रकट हुए हैं। सोमनाथ का प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग चन्द्रमा की शिवोपासना के परिणामस्वरूप वहाँ शिवजी ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए हैं। हर पुराण, हर वेद और अन्य वाङ्मय कभी रुद्र के रूप में, तो कभी शिव अथवा अन्य पर्यायवाची नाम से विविध मन्त्रों के रूप में उनका गुणगान करता है। जैसा कि निम्नलिखित मन्त्र से शिव का आवाहन किया गया है:
गुरुवे सर्वलौकानां, भिषजे भवरोगिणां। विधये सर्वविधिनां, दक्षिणामूर्तये नमः ॥
अर्थात् जो समस्त विश्व के गुरु हैं, जो मृत्युलोक के सारे पापों का निवारण करते हैं और जो समस्त महान् विद्याओं की निधि हैं, ऐसे उन भगवान् दक्षिणामूर्ति शिव को मैं प्रणाम करता हँ। आदि शंकराचार्य का शिव स्तोत्र है :
कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा, श्रवणानयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व, जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो।।
अर्थात हे महादेव! आप करुणा के सागर हैं। विनती करता हूँ कि मुझे क्षमा करें। मेरे उन अपराधों के लिए, जो मैंने जाने अथवा अनजाने में, अपने शरीर, वाणी, कर्म, श्रुतियों, नेत्रों अथवा मस्तिष्क से किए हैं। हे करुणा के सागर महादेव जी, आपकी जय-जयकार हो । अन्य एक यजुर्वेद का अति लोकप्रिय शिव मन्त्र है :
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । ऊर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्।। [यजुर्वेद]
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।