छत्रपति शिवाजी सूर्य, शनि और गुरु ने बनाया मराठा सरताज
Jyotish Sagar|April-2023
लग्नेश की लग्न पर दृष्टि तथा गुरु की भी लग्न पर दृष्टि होने से शिवाजी इतने बलिष्ठ तथा पराक्रमी देह वाले और प्रसिद्ध थे। षष्ठेश एवं सप्तमेश शनि के तृतीय भाव में उच्च का होने के कारण शिवाजी ने सभी शत्रुओं का दमन किया। तृतीयेश शुक्र की अपने भाव पर दृष्टि से वे महान् पराक्रमी हुए।
छत्रपति शिवाजी सूर्य, शनि और गुरु ने बनाया मराठा सरताज

राठों के उत्कर्ष का इतिहास शिवाजी के पिताजी शाहजी भोंसले के समय से प्रारम्भ हो गया था। शाहजी से पूर्व मराठा परमाणुओं की तरह दक्षिण-पश्चिम भारत के भिन्न-भिन्न हिस्सों में बिखरे हुए थे। शाहजी द्वारा प्रारम्भ किया गया मराठों के उत्कर्ष का पूर्ण कार्य उनके पत्र शिवाजी ने शिवाजी ने पूरा किया था।

शिवाजी के जन्म के विषय में अनेक विद्वानों की भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं। ज्योतिष के प्रसिद्ध विद्वान् बी. वी. रमन ने विभिन्न स्रोतों की जानकारी के अनुसार इनकी जन्म तारीख 19 फरवरी, 1630 ईस्वी निर्धारित की है। उनके अनुसार इस दिन सायंकाल में सिंह लग्न और धनु नवांश में शिवाजी का जन्म पूना के उत्तर दिशा में स्थित जुन्नार नगर के समीप शिवनेर के पहाड़ी किले में हुआ था।

ऐसा माना जाता है कि शिवाजी का जन्म माँ भवानी की कृपा से हुआ था। इसी कारण उनका नाम शिवाजी रखा गया। जब वे सात वर्ष के तो उनके पिता ने उनकी माता का परित्याग कर दिया और उन्हें दादाजी कोंणदेव के संरक्षण में पहले शिवनेर और फिर पूना में छोड़ दिया। उनकी माता जीजाबाई ईश्वर की परम भक्त और पतिव्रता स्त्री थीं। शाहजी के त्यागने के कारण शिवाजी और उनकी माता के मध्य परस्पर बहुत अधिक स्नेह विद्यमान हो गया था। बालक शिवाजी का अपनी माता के प्रति ऐसा प्रेम था, जैसा कि भक्त का भगवान् से।

शिवाजी बचपन से ही निर्भीक और साहसी बालक थे, जिसने अपने से उच्च अधिकारी की अधीनता में रहना, तो मानो सीखा ही नहीं था। शिवाजी की माता, गुरु एवं संरक्षक दादाजी कोंणदेव ने उन्हें हिंद धर्म और शास्त्रों की शिक्षा दी थी। इसके साथ ही उन्हें सैनिक शिक्षा भी प्रदान की गई। अधिक पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद शिवाजी ने रामायण, महाभारत तथा दूसरे हिंदू शास्त्रों का ज्ञान सिर्फ सुनकर ही कर लिया था।

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