सारा वृक्ष-परिवार एवं मानव समाज को जोड़ने का यह प्रयत्न वृक्षवल्ली वंशवृद्धि के प्रतीक है। वृक्ष हमारे गुरु हैं, साथी हैं। भारतीय संस्कृति में परम्परानुसार यह माना जाता है कि वृक्षों पर अद्भुत एवं अलौकिक शक्ति का निवास है। इसलिए वृक्षों को पूजनीय माना जाता है। इसके अलावा अनेक वृक्षों के पत्ते, छाल, फूल, जड़ों आदि का औषधियों में उपयोग होता है। इन वृक्षों के प्रति हम कृतज्ञ हैं। अनेक सत्पुरुषों का सान्निध्य वृक्षों को मिला है। उनके सामने हम नतमस्तक हैं जैसे बोधिवृक्ष, गुलेर का वृक्ष आदि।
भारतीय संस्कृति प्रकृति के साथ ही विकसित हुई हैं। सीमेन्ट-कंक्रीट के जंगल मनुष्य ने ही विकसित किए हैं। पैसे के दासों ने प्रदूषण का खतरा पैदा किया है। भारतीय महिलाएँ वृक्ष पूजा करके पर्यावरण को सँवारती हैं। वे परोपकारी, निष्पक्ष वृक्षों का सम्मान करती है। पूरा 'आयुर्वेद' तो वे जानती भी नहीं हैं, फिर भी महिलाएँ भक्ति भाव से परम्पराओं को निभाती हैं। परमपिता ब्रह्मा का निवास स्थान पतिव्रता सावित्री ने वृक्ष के नीचे बैठकर अपने पति सत्यवान् की यमदत से प्रार्थना कर जीवित किया।
वटवृक्ष
हिन्दू धर्म में स्त्रियाँ वटसावित्री का व्रत करती हैं। प्रयाग में श्रीराम एवं सीताजी ने इसी वृक्ष के नीचे आश्रय लिया था। जटाएँ धारण करता यह वृक्ष वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मध्यप्रदेश के चिचोली ग्राम में वटवृक्ष के नीचे 5,000 लोग छाया में बैठ सकते हैं। चिंरजीविता का यह प्रतीक है।
आम का वृक्ष
दूसरा पेड़ है आम्रवृक्ष अर्थात् आम का पेड़ । मंगल प्रसंग, धार्मिक विधि एवं शुभ कार्यों में इस वृक्ष को चैतन्य का प्रतीक माना जाता है। यह वृक्ष बहुत महत्त्व रखता है। घर-घर में इसके पत्ते से तोरणद्वार सजाते हैं। शिव, चन्द्रमा और मदन को आम का बयार आम्रमंजरी अत्यन्त प्रिय है एवं माघ सुदी द्वितीया को ये देवी को अर्पित की जाती है। दीर्घजीवी यह वृक्ष छायादार तो है ही, साथ ही यह वृक्ष फलों का राजा भी है।
भगवान महावीर ने आमराई में तपश्चर्या की है। विंध्यक्षेत्र में लोग आम्रवृक्ष की शादी चमेली की बेल से करते हैं। जब तक यह शादी नहीं होती, तब तक वे इस वृक्ष के फल नहीं खाते।
पीपल का वृक्ष
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।