पूरी दुनिया में सत्य का स्वरूप इकलौता माना गया है। सत्य तो बस एक है, उसके सिवाय सब झूठ हैं : ‘एकमेव सत्यं, इतरं मिथ्या।' इस जनधारणा ने शताब्दियों से मानव सभ्यता को छला है। सभ्यता के प्रत्येक युग में चूँकि धर्म ने ही सत्य के सन्दर्भ में सर्वाधिक अनुशीलन और अन्वेषण किया है। इसलिए प्रत्येक युग में धर्म की नदी नहीं, वरन् खून की नदियाँ बहायी हैं। अतीत से लेकर अब तक बेशुमार युद्धों का सूत्रपात धर्म के ही जरिये हुआ है।
यह विडम्बना ही है कि जिस धर्म का दावा 'चरम शान्ति की उपलब्धता' रहा है, उसी से युद्ध, हिंसा, अशान्ति के अनेक ज्वारभाटे वजूद में आए हैं। यह दूभर विडम्बना सत्य के इकलौते, इकहरे और एकमात्र स्वरूप की धारणा के कारण ही सम्भव हुई है। संसार में जितने धर्म संस्थान विकसित हुए, सबने सत्य का अपने-अपने तरीके से साक्षात्कार किया। उनकी धारणाबद्ध दृष्टि में उनका जाना सत्य ही 'एकमात्र सत्य बना और बाकी सब झूठा'
अनुयायियों के लिए भी यही 'एकमात्र सत्य' इकलौता और अन्तिम सत्य साबित हुआ। कोई भी धर्म संस्थान अपने ‘एकमात्र सत्य' के सिंहासन से नीचे उतरकर दूसरे धर्म संस्थान के सत्य को स्वीकार करने के लिए स्वभावतः राजी नहीं हुआ। परिणामस्वरूप अपने ‘एकमात्र सत्य' को सर्वप्रतिष्ठित और सर्वमान्य करने के प्रयासों ने सभ्यता को युद्धों की विभीषिका में जब-तब धकेल दिया।
धरती पर सिर्फ महावीर ने 'एकमात्र सत्य' की जगधारणा का करीने से खण्डन किया। चरम सत्य को हालाँकि उन्होंने भी करार दिया, लेकिन उसके एकमात्र स्वरूप में भासित किए जा सकने की सम्भावना को उन्होंने साफ तौर पर नकारा। उनकी दृष्टि में सत्य एक जरूर है, पर ऐसा एक, जो विभिन्न सत्यगत टुकड़ों से मिलकर बना है और एकबारगी कभी अपने सम्पूर्ण स्वरूप में प्रत्याभासित नहीं होता। अनगिन सूरतें हैं सत्य की, जिन सबका जोड़-जमा ही चरम सत्य है।
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
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प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
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राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
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जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।