पुरातात्विक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि सूर्योपासना 8000-9000 ईसा पूर्व से प्रचलित हुई। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ, वैसे-वैसे सूर्य की महत्ता और उसकी उपासना में वृद्धि होती गई। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि राम-रावण युद्ध के दौरान महर्षि अगस्त्य के परामर्श से भगवान् राम ने आदित्यहृदय स्तोत्र के रूप में भगवान् सूर्य की स्तुति की थी। महाभारत में उल्लेख है कि युधिष्ठिर के पास 1000 सूर्योपासक ब्राह्मण आए थे, जिनके 8000 अनुयायी थे। इस प्रकार सौर सम्प्रदाय महाभारत काल में अस्तित्व में आ गया था।
पुराणों के अनुसार अदिति के 12 पुत्र आदित्य के नाम से प्रसिद्ध हुए-
धाता मित्रोऽर्यमा रुद्रो वरुण सूर्य एव च,
भगो विवस्वान् पूषा च सविता दशमः स्मृतः।
एकादशस्तथा त्वष्टा विष्णुर्द्वादश उच्यते।
अर्थात् (1) धाता, (2) मित्र, (3) अर्यमा, (4) रुद्र, (5) वरुण, (6) सूर्य, (7) भग, (8) विवस्वान्, (9) पूषा, (10) सविता, (11) त्वष्टा और (12) विष्णु।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार भगवान् सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ। संज्ञा के गर्भ से तीन सन्तानें हुईं— यमुना, वैवस्वत मनु और यम। संज्ञा सूर्य का तेज सह नहीं सकीं और उनके पास अपनी छाया छोड़कर पिता के पास लौट आई। तब विश्वकर्मा ने सूर्य के तेज को थोड़ा कम किया, जिससे संज्ञा उसे सहन कर सकी। संज्ञा और छाया के अलावा राज्ञी और प्रभा भी सूर्य की पत्नियाँ बताई गई हैं। प्रभा से प्रभात का तथा छाया से सावर्णि, शनि तथा तपती का जन्म हुआ। अनेक स्थानों पर उषा का भी सूर्य की पत्नी के रूप में उल्लेख हुआ है।
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
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राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।