हिन्दू संस्कृति में मानव इतिहास को सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलियुग इन चार युगों में विभक्त किया गया है और प्रत्येक युग में भगवान् विष्णु के अवतार हुए हैं। द्वापरयुग के अन्तिम चरण में श्रीकृष्ण का अवतार हुआ, तो कलियुग के अन्तिम चरण में भगवान् कल्कि का अवतार होगा। महाभारत में वेदव्यास जी लिखते हैं कि कलियुग के अन्त में जब धर्म शिथिल हो जायेगा, उस समय भगवान् श्रीहरि पाखण्डियों के वध तथा धर्म की वृद्धि के लिए और ब्राह्मणों के हित की कामना से पुनः अवतार लेंगे। उनके उस अवतार का नाम 'कल्कि विष्णुयशा' होगा।
कल्की विष्णुयशा नाम भूयश्चोत्पत्स्यते हरिः ।
कर्युगान्ते सम्प्राप्ते धर्मे शिथिलतां गते ।।
पाखण्डिनां गणानां हि वधार्थे भरतर्षभः ।
धर्मस्य च विवृद्धयर्थं विप्राणां हितकाम्यया ।।
(सभापर्व, अध्याय 38 )
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सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
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राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
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वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
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