अपने शौर्य और वीरता का परिचय देते हुए कई बालनायकों ने अपने प्राणों का बलिदान भी दिया। वीर सावरकर, श्रीकृष्ण सरल, रविचन्द्र गुप्त, जगतराम आर्य, जयन्त सहस्रबुद्धे जैसे स्वातंत्र्यवीरों ने स्वयं अपना जीवन भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित करते हुए इस समर के बलिदानी वीरों की गाथाओं को अपने साहित्य के माध्यम से सहेजा भी। ऐसे विपुल साहित्य का अध्ययन करते हुए लगभग ५०० से अधिक बालवीरों की शौर्यगाथाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। उनमें से कुछ पर यहाँ चर्चा करेंगे।
वर्ष १८५७ में उत्तर प्रदेश के कानपुर के निकट बिठूर में नानासाहब पेशवा का महल क्रान्ति का प्रमुख केन्द्र बना हुआ था। एक दिन अंग्रेजों को छकाते हुए नाना बिठूर से बाहर गुप्त स्थान पर जा छुपे। नाना की उनकी तेरह वर्षीय पुत्री मैना को सब पता था।
अंग्रेज नाना को ढूंढ़ते हुए महल में आए तो मैना सामने आ खड़ी हुई और बोली “मैं मैना हूँ। नानासाहब की बेटी " अंग्रेज अफसर ने उससे नाना का पता पूछा, तो बोली “मैं नहीं बताऊँगी।” डराने-धमकाने के बाद दूसरे अंग्रेज ने मैना को खम्बे से बांधकर कोड़ों से पीटा। फिर भी उसने मुँह नहीं खोला। कानपुर ले जाकर मैना को डराने के लिए आग में फेंक दिया, नन्हीं साहसी मैना लपटों में जलती रही और प्राण त्याग दिये, पर वतन से गद्दारी नहीं की।
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष