भगवान राम के जीवन में वनवासी
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|March 2023
प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रंथों में 'रामायण' जनमानस में सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथ है।
प्रमोद भार्गव
भगवान राम के जीवन में वनवासी

भारत के सामंत और वर्तमान संवैधानिक भारतीय लोकतंत्र में राम के आदर्श मूल्य और में रामराज्य की परिकल्पना प्रकट अथवा अप्रगट रूप में सदैव विद्यमान रही है। अतएव रामायणकालीन मूल्यों ने भारतीय जन-मानस को सबसे ज्यादा उद्वेलित किया है। इस जन समुदाय में रामकथाओं में उल्लेखित वे सब वनवासी जातियां भी शामिल हैं, जिन्हें वानर, भालू, गिद्ध, गरुड़ भील, कोल, नाग इत्यादि कहा गया है। यह सौ प्रतिशत सच्चाई है कि ये लोग वन-पशु नहीं थे। इसके उलट वन-प्रान्तों में रहनेवाले ऐसे विलक्षण समुदाय थे, जिनकी निर्भरता प्रकृति पर अवलम्बित थी। उस कालखंड में इनमें से अधिकांश समूह वृक्षों की शाखाओं, पर्वतों की गुफाओं या फिर पर्वत शिखरों की कंदराओं में रहते थे। ये अर्धनग्न अवस्था में रहते थे और रक्षा के लिए पत्थर और लकड़ियों का प्रयोग करते थे। राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए इन्हीं बनवासियों का सहयोग लिया। जिन वन्य प्राणियों के नाम से इन वनवासियों को रामायण काल में चिन्हित किया गया है, सम्भव है, ये लोग अपने समूहों की पहचान के लिए उपरोक्त प्राणियों के मुख के मुखौटे भारण करते हों। रांगेय राघव ने अपनी पुस्तक 'महागाथा' में यही अवधारण दी है। 

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