दरअसल, प्रदूषक तत्वों का स्तर पीएम-2.5 से पीएम-10 लेवल तक होता है। इनमें पीएम 2.5 से बड़े प्रदूषक तत्व हमारी सांस के जरिये शरीर के अंदर पहुंचकर फेफड़ों को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं जबकि सांस की नली में मौजूद कई प्रदूषक तत्व विघटित होकर पीएम-2.5 से छोटे होकर रक्त में मिल जाते हैं। रक्त प्रवाह प्रक्रिया के साथ शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंच जाते हैं और उन्हें नुकसान पहुचाते हैं। सांस लेने में दिक्कत होना, गले में खराश या जलन, सिर दर्द, आंखों में जलन या खुजली होना, उल्टी, पेट दर्द जैसी समस्याएं देखी जा सकती हैं। जो कालांतर में अस्थमा और सांस संबंधी दिक्कतें हो जाती हैं, फेफड़ों की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, डायबिटीज, साइनोसाइटिस, जैसे - गले या फेफड़ों में इंफेक्शन जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है।
किसे है ज्यादा खतरा
सबसे ज्यादा खतरा कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों (बच्चों और बुजुर्गों) और पहले से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को होता है। बच्चों से का शरीर व्यस्कों से 7-8 गुना छोटा होता है जिससे वो किसी बीमारी की जल्दी पकड़ में भी आ सकते हैं। इसलिए माता-पिता को उनका विशेष ध्यान रखना जरूरी हैं।
अपनाएं ये टिप्स
• बच्चों के रोल मॉडल बनें। बच्चों के साथ सख्ती न बरतकर नरम रवैया अपनाएं। प्रदूषणस्तर जानने के लिए मोबाइल पर एयर क्वॉलिटी मॉनीटरिंग ऐप डाउनलोड करें। उन्हें प्यार से वायु प्रदूषण, बिगड़ते एक्यूआई इंडेक्स की जानकारी दें। उन्हें बचाव के लिए भरसक प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करें। बहुत जरूरी न हो, बाहर जाने से बचें और बच्चों को भी बाहर न भेजें। इन दिनों बाहर खेलने, कसरत करने, जिमिंग, सुबह की सैर, जैसी शारीरिक गतिविधियों के लिए न भेजें। दरअसल, इन सभी शारीरिक गतिविधियों को करते समय ऑक्सीजन की जरूरत ज्यादा बढ़ जाती है। जितना ज्यादा सांस लेने पर जहरीली हवा अंदर जाने का अंदेशा रहता है। नतीजतन फेफड़ों को नुकसान अधिक होता है। बेहतर है कि इन्हें घर में ही किया जाए।
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