पुस्तक प्रेमियों के लिए सबसे बड़ा त्यौहार विश्व पुस्तक मेला 10 से 18 फरवरी को आयोजित होने जा रहा है। इस बार पुस्तक मेले की थीम 'बहुभाषी भारत: एक जीवंत परंपरा' है। यह मेला महज किताबों का बाजार नहीं है, यह विचारों और कहानी कहने का उत्सव है। यहां की हवाओं में मानो किताबों की एक सकारात्मक खुशबू होती है, जो किसी भी पुस्तक प्रेमी को अपनी ओर आकर्षित करती है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के निदेशक युवराज मलिक ने हमसे बातचीत करते हुए मेले के बारे में सभी तरह की जानकारियाँ दी हैं।
मेले की थीम 'बहुभाषी भारत: एक जीवंत परंपरा' से हम क्या समझें?
भारत विविधताओं का देश है। यहां हर कोस पर भाषा बदल जाती है। भाषायी विविधता का जश्न मनाने के लिए इस थीम को चुना गया है। अपनी भाषा पर हर कोई गर्व महसूस करे। जैसा कि आप जानते हैं कि सबसे बड़े शैक्षिक सुधार राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने भी बहुभाषावाद पर जोर दिया है। शुरुआती दौर में अपनी मातृभाषा में पढ़ने से बच्चे का बौद्धिक और मानसिक विकास ज्यादा होगा। भारत की सभी भाषाओं और बोलियों को उत्सव की तरह मनाने के लिए इस थीम का चयन किया गया ताकि हर कोई अपनी मातृभाषा पर गर्व महसूस करे। बच्चे और युवा किसी विशेष भाषा में शिक्षा लेने के बजाय अपनी मातृभाषा में बेहिचक अपने भावों को व्यक्त करें, इसे ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से थीम मंडप तैयार किया गया है, जिसमें कलाकृतियों के जरिये बहुभाषी भारत की झलक पेश की जाएगी। बहु भाषावाद को बढ़ावा देने के लिए इस बार बाल साहित्य, लोक साहित्य, संस्कृति, कला, अध्यात्म, पुराण, विज्ञान, तकनीक, इतिहास, भूगोल सहित सभी विषयों की किताबें देश की हर भाषा में उपलब्ध होंगी। पाठकों में मातृभाषा के प्रति सम्मान बढ़े और वे अपने विचारों को खुलकर सामने ला सकें, इसके लिए करीब एक हजार प्रकाशक अपनी किताबों के साथ मेले में आएंगे।
हर किसी को अपनी मातृभाषा जरूर आनी चाहिए?
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