बच्चे अक्सर वही सीखते हैं जो वह अपने माता-पिता को करते हुए। देखते हैं और वही बोलते हैं जिस भाषा में माता-पिता आपस में बातचीत करते हैं। सांकेतिक भाषा हो या मौखिक भाषा, बच्चे का व्यक्तिगत, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करती है क्योंकि पहली भाषा का आपके जीवन में गहरा प्रभाव पड़ता है।
अभिभावक होने के नाते क्या कभी आपने यह सोचा है कि बच्चे को अधिक से अधिक भाषाएं क्यों सिखानी चाहिए ? दरअसल इससे बच्चे का शब्द भंडार बढ़ता है और उसका बौद्धिक विकास होता है। भविष्य में अधिक भाषाओं का ध्यान उसे उसके करियर में लाभ पहुंचाता है, यदि आपका बच्चा कला, साहित्य के क्षेत्र में जाना चाहता है तो भारतीय और विदेशी भाषाओं के साहित्य और कला को जानने में उसे मदद होगी। आइए एक बार भाषा के स्वरूप और उसकी आवश्यकता समझ लें ताकि आप बहुभाषी होने का महत्व भी जान पायें।
बच्चे के लिए जरूरी मातृ भाषा
भाषाएं इंसान की सबसे बड़ी जरूरत है। सोचिये अगर भाषा न होती तो समाज का विकास कैसे होता। एक व्यक्ति सबसे पहले अपनी मां की भाषा सीखता है। चूंकि बच्चा मां के सबसे करीब होता है ऐसे में जो मां की भाषा होती है वह बच्चे की भी भाषा होती है। यही कारण है कि हमें हमारी मातृभाषा अपनी मां की याद दिलाती है। मातृभाषा सिर्फ एक भाषा भर नहीं है वो इससे आगे भी बहुत कुछ है। मातृभाषा हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का आधार होती है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है, विशेषकर हमारी मातृ भाषा। लेकिन आजकल मातृभाषा की जरूरत को नजरअंदाज किया जाता है। माता-पिता ये तो चाहते हैं कि उनका बच्चा अंग्रेजी बोले लेकिन वो मातृभाषा पर इतना बल नहीं देते हैं। मातृभाषा बोले तो ठीक नहीं बोले तो भी ठीक लेकिन वो इस सहूलियत में ये भूल जाते हैं कि मातृभाषा सिर्फ एक भाषा नहीं है बल्कि ये आपको आपकी जड़ों से जोड़े रखने का एक बेहतरीन माध्यम है। अन्य भाषाओं की भी आवश्यकता है ताकि हम कुछ नया सीख सकें लेकिन मातृभाषा की भी जरूरत है।
बच्चे के विकास में सहायक
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