एक आईटी फौर्म में काम करने वाले समरेश को खाना बनाना नहीं आता लेकिन उसे अपने होम टाउन से निकल कर मुंबई काम के लिए आना पड़ा. सैलरी अच्छी है, काम मनमुताबिक है, ऐसे में न कहने की कोई गुंजाइश नहीं रही. वह सीधे समान ले कर मुंबई आ गया. यहां उस ने कुछ दिन तक बाहर का बना भोजन खाया. लेकिन इतना औली और फ्राइड खा कर वह तंग हो गया और अंत में एक दिन मां से पूछ कर दालचावल बना कर खाए तो उसे बहुत अच्छा लगा. मगर हर दिन दालचावल खाना उस के बस की बात नहीं. और कुछ अलग और चटपटा खाने का मन हुआ बाजार जा कर रैडी टू ईट मलाईकोफ्ता ले कर आया. निर्देशानुसार बनाने पर उसे वह डिश बहुत अच्छी लगी.
आज वह प्रायः ऐसी रैडी टू ईट डिशेज लेकर आता है और उन्हें पका कर थोड़ी धनियापत्ती से गार्निश कर लेता है, जिस से उन का स्वाद और भी अच्छा बन जाता है. एक दिन तो उस ने अपने 2 दोस्तों को बुला कर भी खाना खिलाया. इस से दोस्त भी खुश नजर आए क्योंकि रैडी टू ईट रैसिपी का स्वाद आजकल औरिजिनल घर के पकी हुई डिशेज की तरह मिलने लगा है. ऐसे में कामकाजी महिलाएं भी इन का प्रयोग कर रही हैं.
प्रचलित हुआ कैसे
रैडी टू ईट फूड यानी पहले से पकाया और पैक किया गया भोजन युद्ध के दौरान सेनाओं के लिए तैयार किया जाता था क्योंकि युद्ध के दौरान सैनिकों को पैदल ज्यादा राशन ले जाना होता था इसलिए वजन कम करने के लिए डिब्बाबंद मांस को हलके संरक्षित मांस से बदल कर ले जाया जाने लगा.
ईजी टू कुक
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