Kadambini - December 2019
Kadambini - December 2019
Go Unlimited with Magzter GOLD
Read {{magName}} along with {{magCount}}+ other magazines & newspapers with just one subscription View catalog
1 Month $9.99
1 Year$99.99 $49.99
$4/month
Subscribe only to Kadambini
Buy this issue $0.99
Subscription plans are currently unavailable for this magazine. If you are a Magzter GOLD user, you can read all the back issues with your subscription. If you are not a Magzter GOLD user, you can purchase the back issues and read them.
In this issue
Kadambini, HT Media’s monthly socio-cultural literary magazine has a legacy of more than 51 years old. Its first editor was Late Shri Balkrishna Rao, a prominent Hindi writer. Following him many well known literary figures like Late Shri Ramanand Doshi, Shri Rajendra Awasthy, Ajenya, Mahadevi Verma & Kunwar Narayan have contributed immensely to the magazine taking it to unscalableheights.Known for its quality content, Kadamini has becomeindispensible with evolved and discerning reader who yearns forsomething ‘intelligent’ to read. It covers a wide range of subjects including literature, art, culture, science, history,sociology, films and health giving fresh perspectives on them to its readers.
शब्दों की दुनिया
बार - बार यह बात कही जाती है कि साहित्य समाज का दर्पण है । जाहिर है कि जैसा समाज होता है , साहित्य भी वैसा ही होता है । वर्ष 2019 के साहित्य के संदर्भ में भी यह बात उतनी ही सच है ।
1 min
जगर-मगर बाजार लेकिन...
हाल के दिनों में साहित्य की दुनिया में एक नई चीज हुई है और वह है बाजार और पूंजी का वर्चस्व । पहले ऐसा नहीं था । साहित्यकार जब आपस में मिलते थे तो देश और दुनिया की चिंता ज्यादा करते थे । अब बाजार ने वहां विचारों का दखल कम किया है
1 min
साहित्य की नई प्रवृत्ति
साहित्य का उद्देश्य तो सबका हित है , लेकिन पश्चिम की तर्ज पर हमारे यहां भी एक नई प्रवृत्ति पनप रही है और वह है सब कुछ खोलकर कह देने की । इससे पाठक की कामुकता को बढ़ावा देकर लाभ तो कमाया जा सकता है , लेकिन वह सौंदर्य नहीं पाया जा सकता जो साहित्य का उद्देश्य है
1 min
मुखौटे
अल्पना ने सोचा कि देवास डेढ़ घंटे का सफर है तो वह शादी में रिसेप्शन पर जाने के बजाय सवेरे दस बजे फेरों के समय जाकर शाम चार बजे तक लौट आएगी । वहां पहुंची तो नाच गाने और पटाखों से बचने के लिए पेड़ के नीचे कुर्सी पर बैठ गई। यतिन की बहन गुड्डी और बहनोई मिले तो नाश्ते के साथ बातों का सिलसिला कुछ यों शुरू हुआ कि...
1 min
काल-चिंतन
एक पहाड़ी रात ! अकेला बैठा नीत्शे अपने आप से लड़ रहा था । सहसा उसने आवाज दी - ' लिव डेंजरसली , ' अर्थात खतरे में जियो ।
1 min
खुल रही हैं अलग-अलग राहें
किताबों की दुनिया इस साल काफी समृद्ध रही , लगभग सभी विधाओं में । अच्छी बात यह रही कि अब बड़े और छोटे प्रकाशकों का भेद मिट रहा है और साहित्येतर विधाओं में , खासकर ज्ञान - विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रकाशकों की रुचि बढ़ी है । यह हिंदी की अपनी जनतांत्रिक परंपरा है , जो निरंतर विकसित हो रही है
1 min
हाशिये पर नहीं रहे हाशिये के लोग
हाशिये के लोगों को केंद्र में लानेवाला रहा है यह साल। खासकर ट्रांसजेंडर की दुनिया को लेकर लोगों की संवेदनशीलता बढ़ी है और उस पर कई रचनाएं आई हैं। बहुत सी साहित्यिक विधाओं पर संकट भी दिख रहा है, लेकिन लेखकों में गंभीरता की कमी है, जो थोड़ा उदास करनेवाली बात है, पर यह नई बात नहीं है। ऐसे दौर बीच बीच में आते ही हैं
1 min
धीरे-धीरे मिट रही हैं दूरियां
विश्व साहित्य के नजरिये से देखें तो यह साल भी पिछले साल की तरह ही रहा और शायद अगले साल भी ऐसा ही हो, लेकिन एक बड़ा परिवर्तन इधर देखने में आ रहा है और वह है भारतीय साहित्य का विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित होना । बेशक माध्यम अंग्रेजी ही है , लेकिन उससे क्या? समाज एक दूसरे के पास आ रहा है और भाषाएं भी
1 min
शब्दों को ही तो ढालते हैं हम
नृत्य की दुनिया का भी साहित्य से गहरा संबंध है , क्योंकि नृत्य की बंदिशें कविता की शब्द शक्ति पर ही टिकी होती हैं । हालांकि अब वक्त बदला है , साहित्य और कलाओं की दुनिया में भी ग्लैमर और पैसा आ रहा है । तकनीक और इंटरनेट ने इस तक पहुंच आसान की है । यह अच्छी बात है
1 min
बदल रही है साहित्य की धुरी
साहित्य के लिए यह साल इस अर्थ में अहम है कि इस साल केंद्रीय विधाओं में काफी उलटफेर हुआ है । हालांकि कविता - कहानी अब भी अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं , लेकिन मुख्य जोर सफल लोगों की जीवनी . आत्मकथाओं , यात्रा - संस्मरणों और प्रेरणादायी पुस्तकों का रहा है
1 min
गल्प या पल्प !
यों तो गल्प हमारी साहित्यिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है । लेकिन यह एक नया कथा समय है जहां हाशिये की आवाजें मुखर हैं । देहवादी कहानियों का दौर बीत चुका है , लेकिन स्त्री , दलित और आदिवासी समाज का दर्द और त्रासदी नए रूप में लिखी जा रही है , जिसे रेखांकित किया जाना चाहिए
1 min
साहित्य से संगीत में पूर्णता आती है
संगीत के बाद मेरा शौक साहित्य ही है । इससे मुझे संगीत में भी बहुत मदद मिलती है । किसी समय साहित्यकार एकांत साधना करते थे , लेकिन अब वक्त बदल गया है और इसमें भी पर्याप्त ग्लैमर और पैसा आने लगा है । इंटरनेट के दौर में साहित्य में लोकतांत्रिकता भी बढ़ी है , यह अच्छी बात है
1 min
कुछ दूरियां कुछ नजदीकियां
साहित्यिक कृतियों पर जब भी गंभीरता से फिल्में बनी हैं उनका जादुई असर हुआ है । मुश्किल फिल्म निर्माताओं की है कि वे साहित्यिक कृतियों पर फिल्म बनाना नहीं चाहते , क्योंकि यह एक कठिन काम है और उसके लिए खास साहित्यिक दृष्टि चाहिए । फिर भी ऐसी तमाम फिल्में हैं जिन्होंने मूल रचना के साथ बराबर न्याय किया है
1 min
यह साहित्य की ताकत है
साहित्य और सिनेमा का रिश्ता थोड़ा टेढ़ा है । दोनों दो अलग कला विधाएं हैं । कृति को लेकर हर फिल्मकार का अपना एक अलग नजरिया होता है , इसलिए कई बार जब किसी साहित्यिक कृति पर फिल्म बनती है तो हू ब हू नहीं हो सकती । उससे बेहतर भी हो सकती है और खराब भी
1 min
एक जिद है नईवाली हिंदी
हिंदी में लिखकर जीवन चलाना कभी एक सपना था , लेकिन अब स्थिति वैसी नहीं है । लेखक भी अब सिर्फ हिंदी की दुनिया से नहीं आ रहे हैं । नई वाली हिंदी ने इस स्थिति को बदला है और इसमें नया सिर्फ इतना है कि यह अपने समय की भाषा में दर्ज कर रही है और पाठक इसे हाथोंहाथ ले भी रहे हैं
1 min
होते-होते हो रहे हैं पेशेवर
लेखक-प्रकाशक संबंध हमेशा से जटिल रहे हैं और दिलचस्प यह है कि दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत हमेशा से रही है । अब चूंकि पुस्तकों का भी व्यवसायीकरण बढ़ा है तो लेखक और प्रकाशक भी ज्यादा पेशेवर हो रहे हैं । हालांकि अब भी जब तब यह रिश्ता कटु विवाद का रूप ले ही लेता है
1 min
साहित्य, संस्कृति और समाज
साहित्य को किसी खास कालखंड में बांधकर नहीं देखा जा सकता , वह कालातीत होता है । समाज परिवर्तन में भी उसकी वैसी सीधी सरल भूमिका नहीं होती जैसी मानी जाती है, लेकिन बिल्कुल नहीं होती ऐसा भी नहीं है । यह एक जटिल प्रक्रिया है
1 min
घटश्राद्ध
कन्नड़ के ख्यातिलब्ध रचनाकार यू. आर. अनंतमूर्ति की यह चर्चित कहानी है । एक विधवा स्त्री को केंद्र में रखकर परंपरा के नाम पर समाज में व्याप्त विसंगतियों और पाखंड पर यह तीखा प्रहार करती है । लेखक के जन्म-दिवस के मौके पर इस लंबी कहानी का संपादित रूप
1 min
वत्सल
समय के साथ अनुकूलन बैठाने में तिवारी को अद्भुत महारत है। जब उनकी पीढ़ी के लोग कंप्यूटरीकरण से संत्रस्त महसूस कर रहे थे तो उन्होंने कंप्यूटर को ऑपरेट करना बड़ी खूबी के साथ सीख लिया। बेटे-बेटी को पढ़ाया-लिखाया और उनकी शादियां कीं। अलबत्ता, यह सब निभाते-निभाते पत्नी का देहांत हो गया तो वे अकेले पड़ गए। घर में किलकारी गूंजने को हुई, पर पौत्र के बजाय पौत्री हुई तो मन थोड़ा बुझ गया। बड़ी मनौतियों के बाद आंगन में पौत्र का आगमन हुआ तो तिवारी जी फूले नहीं समाए। नाम पड़ा बलदेव, जो तिवारी जी के लिए बुल्लू हो गया। बुल्लू ने माहौल कुछ यों बनाया कि बस....
1 min
राजकपूर की आत्मा थे शैलेंद्र
गीतों के सिनेमाई मीटर में सामाजिक सरोकारों और जीवन दर्शन की अभिव्यक्ति में गीतकार शैलेंद्र का कोई सानी नहीं । राजकपूर के लिए शैलेंद्र ‘कविराज' बन गए थे और दोनों का साथ यों बना कि जैसे वे फिल्मी दुनिया में एक दूसरे के लिए ही बने थे । उनकी पुण्यतिथि (14 दिसंबर) के मौके पर उनकी यादें साझा कर रहे हैं उनके बेटे
1 min
बे - रेजगारी के दिन
रेजगारी अब मिलती नहीं । किसी को शगुन का लिफाफा देना हो तो बड़ा संकट एक रुपये के नोट या सिक्के का होता है , क्योंकि एक सौ एक या पांच सौ एक देना हमारे यहां मांगलिक माना गया है । सवा रुपये का कभी बड़ा महत्त्व था , लेकिन चवन्नी ही बाजार से गायब हो गई और पंडितजी भी दक्षिणा में अब बड़े नोटों के फेर में पड़े हुए हैं । देखा जाए तो कैसलेस के दौर में यह बे-रेजगारी के दिन हैं
1 min
बचकर रहें सर्दियों में
सर्दियां अस्थमा रोगियों के लिए कई बार जैसे मुसीबत ही बन जाती हैं। इस बीमारी में श्वास की नलियों में सूजन हो जाती है , जिससे वे सिकड़ने लगती हैं और सांस लेने में दिक्कत होती है । जाड़े के दिनों में श्वास नलियों में सिकुड़न बढ़ने का खतरा ज्यादा होता है । स्मॉग वगैरह परेशानी को जानलेवा बना देते हैं । थोड़ी सावधानी रखी जाए तो अस्थमा को नियंत्रण में रखा जा सकता है
1 min
Kadambini Magazine Description:
Publisher: HT Digital Streams Ltd.
Category: Culture
Language: Hindi
Frequency: Monthly
Kadambini, HT Media’s monthly socio-cultural literary magazine has a legacy of more than 51 years old. Its first editor was Late Shri Balkrishna Rao, a prominent Hindi writer. Following him many well known literary figures like Late Shri Ramanand Doshi, Shri Rajendra Awasthy, Ajenya, Mahadevi Verma & Kunwar Narayan have contributed immensely to the magazine taking it to unscalableheights.Known for its quality content, Kadamini has becomeindispensible with evolved and discerning reader who yearns forsomething ‘intelligent’ to read. It covers a wide range of subjects including literature, art, culture, science, history,sociology, films and health giving fresh perspectives on them to its readers.
- Cancel Anytime [ No Commitments ]
- Digital Only