तरुण हर दिन अपनी दादी के साथ सामुदायिक पार्क जाता था. पार्क में बेंच पर बैठ कर स्वैटर बुनते हुए उसकी दादी उसे भगवान राम, महा धनुर्धर अर्जुन, दानवीर कर्ण, सात बौनों, जिन्न और उड़ने वाले कालीन की कहानियां सुनाती थीं.
उस के लिए उस की दादी एक रहस्य की तरह थीं. घर पर तो वे साधारण महिला की तरह लगती थीं, जो अखबार पढ़तीं और तरुण को खाना खिलाती थीं, लेकिन जैसे ही पार्क पहुंचती, वे जादूगरनी में बदल जातीं, जो हर दिन अपने जादुई धागे से एक नई कहानी बुनतीं. कोई नहीं जानता था कि ये कहानियां उन के पास आती कहां से हैं.
तरुण को मिल्क केक बहुत पसंद था. जब भी उसके पापा शहर में महीनों काम करने के बाद अपने छोटे से शहर आते, तो वे हमेशा तरुण के लिए मिल्क केक का एक डब्बा लाते.
तरुण मिल्क केक मुंह में दबाए बिस्तर पर लेटा अधूरी रह गई आखिरी कहानी के बारे में सोचता रहता.
अगले दिन, उसकी दादी ने उसे एक नई कहानी 'द टेल औफ द मैजिक लैंप' सुनाई. तरुण को यह कहानी बहुत पसंद आई और उसने स्कूल के वार्षिक समारोह में इसे सुनाने का फैसला किया. उस ने अपनी दादी से कहा कि वे इस कहानी को रोज दोहराएं ताकि वह इसे लिख और याद कर सके, लेकिन इस में समस्या थी.
हर बार जब दादी कहानी सुनातीं, तो वे उस में कुछ बदलाव करतीं, कभी पात्रों के नाम बदल देतीं तो कभी बीच में ही नई कहानी शुरू कर देतीं. निराश हो कर तरुण अपनी नोटबुक में उन की गलतियों को सुधारता और दादी उसे डांटतीं. वे दावा करतीं कि विवरण मूल कहानी का हिस्सा नहीं था.
जब उस से यह बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने कहा, "छोड़ो दादी."
दादी उसकी निराशा को समझ गईं. उन्होंने पास आ कर उस के गाल सहलाए और कहा, "मेरे प्यारे बेटे, कहानी में पात्रों के नाम से क्या फर्क पड़ता है? सार तो कहानी के कथानक में ही है. अब अगर तुम इसे सुनाओगे, तो कहानी तुम्हारी होगी, लेकिन कहानी कहने में जुनून होना चाहिए. अगर आप इसे नीरस तरीके से सुनाएंगे, तो इस में मजा नहीं आएगा."
दादी की बहुत सी बातों की तरह यह बात भी उसे समझ नहीं आई.
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
जो ढूंढ़े वही पाए
अपनी ठंडी, फूस वाली झोंपड़ी से राजी बाहर आई. उस के छोटे, नन्हे पैरों को खुरदरी, धूप से तपती जमीन झुलसा रही थी. उस ने सूरज की ओर देखा, वह अभी आसमान में बहुत ऊपर नहीं था. उस की स्थिति को देखते हुए राजी अनुमान लगाया कि लगभग 10 बज रहे होंगे.
एक कुत्ता जिस का नाम डौट था
डौट की तरह दिखने वाले कुत्ते चैन्नई की सड़कों पर बहुत अधिक पाए जाते हैं. दीया कभी नहीं समझ पाई कि आखिर क्यों उस जैसे एक खास कुत्ते ने जो किसी भी अन्य सफेद और भूरे कुत्ते की तरह हीथा, उस के दिल के तारों को छू लिया था.
स्कूल का संविधान
10 वर्षीय मयंक ने खाने के लिए अपना टिफिन खोला ही था कि उस के खाने की खुशबू पूरी क्लास में फैल गई.
तरुण की कहानी
\"कहानियां ताजी हवा के झोंके की तरह होनी चाहिए, ताकि वे हमारी आत्मा को शक्ति दें,” तरुण की दादी ने उस से कहा.
फौक्सी को सबक
एक समय की बात है, एक घने, हरेभरे जंगल में जिंदगी की चहलपहल गूंज रही थी, वहां फौक्सी नाम का एक लोमड़ रहता था. फौक्सी को उस के तेज दिमाग और आकर्षण के लिए जाना जाता था, फिर भी वह अकसर अपने कारनामों को बढ़ाचढ़ा कर पेश करता था. उस के सब से अच्छे दोस्त सैंडी गौरैया, रोजी खरगोश और टिम्मी कछुआ थे.
बच्चे देश का भविष्य
भारत की आजादी के कुछ साल बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, जिन्हें प्यार से 'चाचा नेहरू' के नाम से भी जाना जाता है, वे एक कार्यक्रम में छोटे से गांव में आए. नेहरूजी के आने की खबर गांव में फैल गई और हर कोई उन के स्वागत के लिए उत्सुक था. खास कर बच्चे काफी उत्साहित थे कि उन के प्यारे चाचा नेहरू उन से मिलने आ रहे हैं.
पोपी और करण की मास्टरशेफ मम्मी
“इस बार आप बार आप ने क्या बनाया हैं, मम्मी?\"
अद्भुत दीवाली
जब छोटा मैडी बंदर स्कूल से घर आया तो वह हताश था. उसकी मां लता समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या हो गया है? सुबह जब वह खुशीखुशी स्कूल के लिए निकला था तो बोला, “मम्मी, शाम को हम खरीदारी करने के लिए शहर चलेंगे.\"
डिक्शनरी
बहुत से विद्वानों ने अलगअलग समय पर विभिन्न भाषाओं में डिक्शनरी बनाने का प्रयत्न किया, जिस से सभी को शब्दों के अर्थ खोजने में सुविधा हो. 1604 में रौबर्ट कौड्रे ने कड़ी मेहनत कर के अंग्रेजी भाषा के 3 हजार शब्दों का उन के अर्थ सहित संग्रह किया.
सिल्वर लेक की यादगार दीवाली
\"पटाखों के बिना दीवाली नहीं होती है,” ऋषभ ने नाराज हो कर कहा.