फेस्टिव सीजन हमेशा कुछ नया करने का अवसर लेकर आता है। त्योहार ही हैं, जो अपनों को करीब लाते हैं और परायों को अपना बनाने का मौका देते हैं। बस मन में स्नेह की भावना होनी चाहिए। त्योहारी सीजन शुरू हो चुका है। रुठों को मनाने और परायों को अपनाने का एक तरीका है उपहार, जो हर ओर खुशियां बिखेरता है। उपहार का कोई मूल्य नहीं होता, मूल्य होता है देने वाले की भावनाओं का। आप भौतिकवादी हैं, जो कि मानते हैं कि प्रकृति में बस पदार्थों का ही मूल्य है तो अपने स्वभाव को बदलिए। अगर आप उपहारों को उसके मूल्य या उपयोगिता से तौलेंगी तो उसकी सौंधी खुशबू को महसूस नहीं कर पाएंगी। उपहार अपनों के प्रति प्यार के इजहार का बेहद खूबसूरत तरीका है। जब हम किसी को कोई भी उपहार देते हैं तो उसके चेहरे की खुशी देखकर हमारी खुशी दोगुनी हो जाती है। और वह उपहार हमें जिंदगी भर याद रहता है। हमेशा आपको वह पल खुशी देता है और उसकी मुस्कान हमेशा आपके दिल में बस जाती हैं। रिश्तों में भी उपहार के अपने अलग मायने हैं। मां की दी गई कान की बालियां आप आज भी बड़े प्यार से संजो कर रखती हैं, पापा की दी गई पायल बेशक अब छोटी हो गई है, लेकिन किसी को देने का आपका मन आज भी नहीं करता है। यह रिश्तों की मधुरता ही है, जो आज भी बनी हुई है। उपहार रिश्तों में मधुरता बनाए रखने का एक बेहतरीन माध्यम हैं, तो गिले-शिकवे दूर करने का खूबसूरत बहाना भी हैं। आप बेशक इसे रिश्तों में एक औपचारिकता का नाम दें, लेकिन ये पुराने हों या नए, रिश्तों में चाशनी का काम करते हैं।
दिवाली समृद्धि का प्रतीक है। दिवाली में सोने-चांदी के सिक्के उपहार में देते समय इस बात का ख्याल रखें कि इन सिक्कों पर माता लक्ष्मी का चित्र न बना हो।
■ कहते हैं मन की बात
कई बार आप अपने माता-पिता बहन-भाई या पति से बहुत कुछ कहना चाहती हैं, मगर झिझक या मजबूरियों के चलते दिल की बात जुबां पर नहीं ला पातीं। ऐसे में मन की बात बोलने के लिए आपको कुछ मीठे बोल और उपहार की जरूरत होती है। उपहार एक ऐसी चीज है, जिसके लिए आपको किसी दिन या मौके की तलाश करने की जरूरत नहीं है, आपका जब मन करें, आप अपने रिश्तों को इसके माध्यम से खुशनुमा बना सकती हैं। बस, उपहार और मीठी-सी मुस्कान के साथ अपने दिल की बात बोल दें।
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11 धार्मिक कॉरीडोर का नगर प्रयागराज
सनातन संस्कृति के उद्भव और विकास की साक्षी प्रयागराज नगरी में तीन पवित्र नदियों की संगम स्थली है तो सृष्टि रचना की कामना के साथ पहला यज्ञ भी यहीं हुआ था। यहां शक्तिपीठ है तो अनादिकाल से अक्षयवट भी है। ऐसे ही अगाध आस्था तथा आध्यत्मिक / सांस्कृतिक महत्व के पुरातन स्थलों का राज्य सरकार द्वारा सौंदर्यीकरण कराया गया है। प्रयागराज एक मात्र ऐसा नगर हैं, जहां 11 धार्मिक कॉरीडोर हैं।
डिजिटल महाकुम्भ अनुभव केंद्र
डिजिटल महाकुम्भ की परिकल्पना को साकार करते हुए इस बार मेला क्षेत्र के सेक्टर तीन में स्थापित 'डिजिटल महाकुम्भ अनुभव केंद्र' आकर्षण का केंद्र है।
स्वस्थ महाकुम्भ
कड़ाके की ठंड के बीच महाकुम्भ में संगम स्नान की अभिलाषा रखने वाले प्रयागराज आ रहे श्रद्धालुओं, संत-महात्माओं, कल्पवासियों और पर्यटकों की स्वास्थ्य सुरक्षा के भी इंतजाम किये गए हैं।
सर्वसुविधायुक्त टेंट सिटी
ठंड में महाकुम्भ में आने वाले हर किसी व्यक्ति की पहली चिंता आवासीय प्रबंध को लेकर होती थी, लेकिन महाकुम्भ 2025 में हर आय वर्ग के लोगों के रहने, खाने-पीने के सुविधाजनक प्रबंध किए गए हैं।
'सनातन के ध्वजवाहक 'अखाड़ों' की दिव्यता-भव्यता ने किया निहाल'
मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर सनातन परंपरा का निर्वहन करते हुए अखाड़ों ने संगम में दिव्य अमृत स्नान किया। भाला, त्रिशूल और तलवारों के साथ युद्ध कला का अद्भुत प्रदर्शन करते हुए घोड़े और रथों पर सवार होकर शोभायात्रा के साथ पहुंचे नागा साधु, संतों की दिव्यता और करतब देखकर श्रद्धालु निहाल हो उठे। पावन त्रिवेणी में अठखेलियाँ करते नागा साधुओं को देखते ही बन रहा था।
त्रिवेणी स्नान को उमड़ा जनसमुद्र
1.75 करोड़ श्रद्धालुओं ने पौष पूर्णिमा पर संगम स्नान किया| 3.50 करोड़ श्रद्धालुओं ने मकर संक्रांति पर लगाई आस्था की डुबकी
संस्कृतियों का संगम, एकता का महाकुम्भ
मकर संक्रांति पर महाकुम्भ में भारत के हर राज्य के लोगों संगम में अमृत स्नान किया। कई देश के श्रद्धालु भी पहुंचे और जय श्री राम, हर हर गंगे, बम बम भोले के उद्घोष के साथ भारतीय जनमानस के साथ घुल मिल गए।
को कहि सकड़ प्रयाग प्रभाऊ
गंगा-यमुना एवं सरस्वती के संगम पर विराजित प्रयाग सभ्यता के ऊषाकाल से ही भारतीय संस्कृति का अमर वाहक और आधार स्तम्भ रहा है। यह हमारे राष्ट्र तथा संस्कृति की पहचान, प्रतीक व पुरातन परम्परा का निर्वाहक रहा है।
तकनीक का महाकुम्भ
इस बार 'डिजिटल महाकुम्भ' के रूप में परिकल्पना की गई है। अब पूरी दुनिया यूपी की डिजिटल और तकनीक आधारित महाकुम्भ-2025 साक्षी बन रही है। मेले की भव्यता को बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर इसका प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से पहली बार प्रदेश सरकार ने पूरे मेले का डिजिटलाइजेशन किया है।
स्वच्छ महाकुम्भ
विश्व के सबसे विराट मानव समागम के स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल बनाये रखने के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष प्रबंध किए गए हैं। एक ओर जहां पूरे प्रयागराज नगर में 03 लाख पौधे लगाए गए हैं तो दूसरी ओर मेला परिसर को 'सिंगल यूज प्लास्टिक फ्री रखने का संकल्प है।