जब सर्दी अपनी चरम सीमा पर होती है, उस वक्त किसान को भी अपनी फसलों को बचाने की चिंता सताने लगती है, क्योंकि कड़क सर्दी के कारण फसलों पर पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है.
कड़ाके की सर्दी के आते ही पाले का नाम सब के दिमाग में आ ही जाता है. पाला किसी प्रकार की बीमारी न होते हुए भी फसलों, विभिन्न सब्जी, फूल एवं फलोत्पादन पर बुरा असर डालता है, जिस के कारण सब्जियों में 80-90 फीसदी, दलहनी फसलों पर 60-70 फीसदी और अनाज वाली फसलों (गेहूं व जौ) में 10-15 फीसदी तक नुकसान हो जाता है. इस के अतिरिक्त फलदार पौधे जैसे पपीता व केला आदि में भी 80-90 फीसदी तक का नुकसान पाले के कारण देखा गया है.
पाले का प्रकोप इतना गंभीर होता है कि किसान को पाले से बचाव के लिए कुछ भी उपाय करने का वक्त नहीं मिल पाता है, जिस के कारण हमें काफी नुकसान उठाना पड़ता है.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे देश की बढ़ती आबादी के लिए उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है. लिहाजा, उत्पादन वृद्धि के लिए जरूरी है सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और बेहतर फसल प्रबंध में रबी फसलों के लिए पाले से होने वाले नुकसान को रोकने या कम करने के उपाय प्रमुख हैं.
पाला पड़ने के लक्षण
प्रायः पाला पड़ने की संभावना 1 जनवरी से 10 जनवरी तक अधिक रहती है. जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही हो और तापमान कम हो जाए, तब पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. दिन के समय सूरज की गरमी से पृथ्वी गरम हो जाती है और जमीन से यह गरमी विकिरण द्वारा वातावरण में बदल जाती है, इसलिए रात में जमीन का तापमान गिर जाता है, क्योंकि जमीन को गरमी तो मिलती है नहीं और इस में मौजूद गरमी विकिरण द्वारा नष्ट हो जाती है.
जब रात का तापमान 32 डिगरी फारेनहाइट अथवा 0 डिगरी सैंटीग्रेड से कम हो जाता है, तो ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें जम जाती हैं यानी वायु में निहित वाष्प जल कणों में बदल कर सीधे हिम कणों में बदल जाती हैं. इस प्रकार हिम के रूप में बनी ओस को पाला कहते हैं.
पाला 2 प्रकार का होता है:
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 7 अक्तूबर, 2024 को मूंगफली पर अनुसंधान एवं विकास को उत्कृष्टता प्रदान करने और किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.
अक्तूबर महीने में खेती के खास काम
यह महीना खेतीबारी के नजरिए य से बहुत खास होता है इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
किसान ने 50 मीट्रिक टन क्षमता का प्याज भंडारगृह बनाया
रकार की मंशा है कि खेती लाभ का धंधा बने. इस के लिए शासन द्वारा किसान हितैषी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
खेती के साथ गौपालन : आत्मनिर्भर बने किसान निर्मल
आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना का लाभ ले कर उन्नत नस्ल का गौपालन कर किसान एवं पशुपालक निर्मल कुमार पाटीदार एक समृद्ध पशुपालक बन गए हैं.
जीआई पंजीकरण से बढ़ाएं कृषि उत्पादों की अहमियत
हमारे देश में कृषि से जुड़ी फल, फूल और अनाज की ऐसी कई किस्में हैं, जो केवल क्षेत्र विशेष में ही उगाई जाती हैं. अगर इन किस्मों को उक्त क्षेत्र से इतर हट कर उगाने की कोशिश भी की गई, तो उन में वह क्वालिटी नहीं आ पाती है, जो उस क्षेत्र विशेष \" में उगाए जाने पर पाई जाती है.
पराली प्रबंधन पर्यावरण के लिए जरूरी
मौजूदा दौर में पराली प्रबंधन का मुद्दा खास है. पूरे देश में प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी तबाह कर रहा है और प्रदूषण का दायरा बढ़ाने में पराली का सब से ज्यादा जिम्मा रहता है. सवाल उठता है कि पराली के जंजाल से कैसे निबटा जाए ?
मक्का की नई हाईब्रिड किस्म एचक्यूपीएम-28
हरियाणा के चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, करनाल ने चारे के लिए अधिक पैदावार देने वाली उच्च गुणवत्तायुक्त प्रोटीन मक्का (एचक्यूपीएम) की संकर किस्म एचक्यूपीएम 28 विकसित की है.
लाख का बढ़ेगा उत्पादन
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत में लाख का उत्पादन मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता है.
धान की कटाई से भंडारण तक की तकनीकी
धान उत्पादन की दृष्टि से भारत दुनिया में सब से बड़े देशों में गिना जाता है.