आज के समय में इन रोगों और कीटों को रोकने में तो हम कामयाब रहे हैं, परंतु रासायनिक कीटनाशकों के विरुद्ध कीटों की प्रतिरोधक क्षमता, जो साल 1954 में 7 कीटनाशी जीवों में मौजूद थी, आज वह 504 से अधिक तक पहुंच गई है.
फफूंद की भी आज कई ऐसी प्रजातियां हैं, जिन में फफूंदनाशियों के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता पाई गई है, इसलिए पौधों में रोगों की रोकथाम के लिए वैकल्पिक तरीके अपना सकते हैं, ताकि खतरनाक कीटनाशियों के उपयोग में कमी ला सकें.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की साल 1996 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, बाजार में 51 फीसदी विभिन्न कृषि खाद्य पदार्थों के नमूनों में जहरीले तत्त्व पाए गए, जिन में से 20 फीसदी खाद्य पदार्थों में यह मात्रा न्यूनतम सुरक्षित मात्रा से अधिक थी. खेती में इन कीटनाशकों के प्रयोग से कृषि उत्पाद में इन कैमिकलों के अवशेषों से इन का सेवन करने वाले लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है.
दुनियाभर में हर साल फफूंदनाशियों और कीटनाशियों की तीखे जहरीलेपन से अनजाने में ही तकरीबन 385 मिलियन किसान और दूसरे लोग प्रभावित होते हैं, जिन में से तकरीबन 11,000 लोगों की मौत हो जाती है.
यदि हम कीटनाशकों के जहरीलेपन की सीमा का आंकलन करें तो पाते हैं कि दुनियाभर में कृषि भूमि का 64 फीसदी हिस्सा एक से अधिक प्रकार के कीटनाशी अणुओं द्वारा प्रदूषण के खतरे में है, वहीं 31 फीसदी बड़े जोखिम की श्रेणी में आता है.
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बाजार में उपलब्ध 18 फीसदी सब्जियों और 12 फीसदी फलों के नमूनों में कैमिकल कीटनाशियों के अवशेष पाए गए, जिन में प्रतिबंधित कैमिकल भी शामिल हैं.
कृषि उत्पाद में मौजूद इन नुकसानदायक रसायनों के इस्तेमाल से शरीर में कई तरह के गंभीर रोग पनपते हैं, जिन में कैंसर, दिल से जुड़े रोग, सिरदर्द, बांझपन और आंखों से संबंधित रोग शामिल हैं.
खेती में प्रयोग होने वाली जमीन एक सजीव माध्यम है, जिस में फसलों के लिए उपयोगी कई तरह के जीवाणु होते हैं, जो फसलों की बढ़ोतरी में मददगार हैं.
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बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
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