हमारे देश में कचरे की लैंडफिलिंग कचरा निष्पादन का प्रमुख तरीका है, जो बिलकुल अवैज्ञानिक है. देश में हजारों लैंडफिल जगहें हैं, जहां हजारों टन ठोस कचरा जमा है, जिस में दिल्ली की गाजीपुर, ओखला, भलस्वा, मुंबई की मुलुंड, देवनार, नागपुर की भांडेवाड़ी, अहमदाबाद की पिराना और बैंगलुरु की मंदूर लैंडफिल साइट्स ऐसी डंपिंग साइट्स हैं, जहां कचरे के बड़ेबड़े पहाड़ बन चुके हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, देशभर में मौजूद कचरे के पहाड़ों के नीचे तकरीबन 15,000 एकड़ जमीन दबी हुई है, जिस पर तकरीबन 16 करोड़ टन कचरा जमा है. देश में बढ़ते कचरे के पहाड़ पानी, हवा एवं मिट्टी को दूषित कर पर्यावरण एवं सेहत के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं.
कचरे के पहाड़ों को खत्म करने के लिए सरकार ने 'स्वच्छ भारत मिशन' के तहत 10 साल में सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार महज 15 फीसदी ही कचरे के पहाड़ों को साफ एवं 35 फीसदी कचरे को निष्पादित किया जा सका है.
अगर इस गति और इतने खर्च से कचरे के पहाड़ों के निष्पादन का काम होगा, तो शायद ये कचरे के पहाड़ कभी भी खत्म नहीं हो पाएंगे. अगर कचरे के पहाड़ खत्म हो भी जाते हैं, तो उन को खत्म करने में जो खर्चा आएगा, वह शायद कचरे के पहाड़ों से होने वाले नुकसान से भी ज्यादा होगा, इसलिए मौजूदा कचरे के पहाड़ों को साफ करने की व्यवस्था के साथसाथ कचरे के पहाड़ों पर खेती करने की कार्ययोजना बनाई जाए, क्योंकि देश में मौजूद ज्यादातर कचरे के पहाड़ों में 50 फीसदी से अधिक जैव कचरा है, इसलिए कचरे के पहाड़ों पर खेती संभव हो सकती है.
कचरा खेती
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नई तकनीक से किसानों की आमदनी बढ़ा रही हैं डा. पूजा गौड़
डा. पूजा गौड़ शिक्षा से स्वावलंबन और स्वावलंबन से माली समृद्धि के लिए जौनसार इलाके के किसानों और युवाओं को खेतीबारी के प्रति जागरूक कर रही हैं. हाल ही में उन्हें उन के किए जा रहे प्रयासों के लिए लखनऊ में दिल्ली प्रैस द्वारा आयोजित 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड 2024' से सम्मानित किया गया.
पशुओं में गर्भाधान
गोवंशीय पशुओं का बारबार गरमी में आना और स्वस्थ व प्रजनन योग्य नर पशु से गर्भाधान या फिर कृत्रिम गर्भाधान सही समय पर कराने पर भी मादा पशु द्वारा गर्भधारण न करने की अवस्था को 'रिपीट ब्रीडिंग' कहते हैं.
पशुओं के लिए बरसीम एक पौष्टिक दलहनी चारा
बरसीम हरे चारे की एक आदर्श फसल है. यह खेत को अधिक उपजाऊ बनाती है. इसे भूसे के साथ मिला कर खिलाने से पशु के निर्वाहक एवं उत्पादन दोनों प्रकार के आहारों में प्रयोग किया जा सकता है.
औषधीय व खुशबूदार पौधों की जैविक खेती
शुरू से ही इनसान दूसरे जीवों की तरह पौधों का इस्तेमाल खाने व औषधि के रूप में करता चला आ रहा है. आज भी ज्यादातर औषधियां जंगलों से उन के प्राकृतिक उत्पादन क्षेत्र से ही लाई जा रही हैं. इस की एक मुख्य वजह तो उनका आसानी से मिलना है. वहीं दूसरी वजह यह है कि जंगल के प्राकृतिक वातावरण में उगने की वजह से इन पौधों की क्वालिटी अच्छी और गुणवत्ता वाली होती है.
दुधारू पशुओं की प्रमुख बीमारियां और उन का उपचार
पशुपालकों को पशुओं की प्रमुख बीमारियों के बारे में जानना बेहद जरूरी है, ताकि उचित समय पर सही कदम उठा कर अपना माली नुकसान होने से बचा जा सके. कुछ बीमारियां तो एक पशु से दूसरे पशु को लग जाती हैं, इसलिए सावधान रहने की जरूरत है.
एक ऐसा गांव जहां हर घर में हैं दुधारू पशु
मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित विश्वविद्यालय की घाटी पर बसा गांव रैयतवारी भैंसपालन और दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है. दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कलक्टर संदीप जीआर के मार्गदर्शन में संचालित मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
रबी की सब्जियों में जैविक कीट प्रबंधन
रबी की सब्जियों में मुख्य रूप से वर्गीय में फूलगोभी, पत्तागोभी, सोलेनेसीवर्गीय में गांठगोभी, टमाटर, बैगन, मिर्च, आलू, पत्तावर्गीय में धनिया, मेथी, सोया, पालक, जड़वर्गीय में मूली, गाजर, शलजम, चुकंदर एवं मसाला में लहसुन, प्याज आदि की खेती की जाती है.
कृषि विविधीकरण : आमदनी का मजबूत जरीया
किसानों को खेती में विविधीकरण अपनाना चाहिए, जिससे कि वे टिकाऊ खेती, औद्यानिकीकरण, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय के साथ ही मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन सहित अन्य लाभदायी उद्यम को करते हुए अपने परिवार की आय को बढ़ाने के साथसाथ स्वरोजगार भी कर सकें.
जनवरी में खेती के काम
जनवरी में गेहूं के खेतों पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान तकरीबन 3 हफ्ते के अंतराल पर गेहूं के खेतों की सिंचाई करते रहें. गेहूं के खेतों में अगर खरपतवार या दूसरे फालतू पौधे पनपते नजर आएं, तो उन्हें फौरन उखाड़ दें.
जल संसाधनों के अधिक दोहन को रोकना जरूरी
बायोसैंसर जैसी आधुनिक तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है. मक्का की फसल धान वाले खेतों में पानी बचाने के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है.