फिल्म देखने के बाद बहुत से लोगों के मन में ओशो, शीला और रजनीशपुरम, इन तीनों के संबंध में बहुत से प्रश्न उठने लगे हैं जैसे, यदि ओशो एक सद्गुरु थे तो उन्हें पता क्यों नहीं चला कि शीला कैसी थी? और यदि पता था तो उन्होंने शीला को क्यों चुना? तो कोई जानना चाहता है कि शीला की हरकतों पर ओशो ने क्या कहा? जनता शीला, आश्रम व उसकी व्यवस्था पर जो इतने सवाल खड़ा करती है उसमें क्या और कितनी सच्चाई है? ओशो की शीला के बारे में क्या राय थी। आज जो शीला इतने सालों बाद अपनी सफाई दे रही है वो उसने पहले क्यों नहीं दी, आज क्यों जब न वो आश्रम है न ही ओशो। शीला जो बोल रही है उसमें कितनी सच्चाई है? जब ओशो को शीला के इरादों और फरार होने का पता चला तो ओशो ने क्या किया? आदि ऐसे कई सवाल है जो दर्शकों के मन में है। प्रस्तुत है ओशो की ही पुस्तकों से इन सब सवालों के जवाब, जिन्हें वह समय-समय अपने प्रवचनों में देते रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है ओशो न केवल सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, राजनैतिक हर तरह के सवालों के जवाब दे गए हैं बल्कि वह उन सवालों के भी जवाब पहले ही दे गए हैं जो उनके देह त्यागने के बाद भी उठते रहेंगे। ओशो सही अर्थों में 'संबुद्ध रहस्यदर्शी सद्गुरु' हैं, शायद यही कारण है कि वह भविष्य में उठने वाली हर समस्या पर पहले से ही बोल चुके हैं। उन्हें अंदेशा था कि उनके जाने के बाद क्या होने वाला है या क्या हो सकता है। बहरहाल प्रस्तुत है उन्हीं की पुस्तकों के संपादित एवं अनुवादित उपर्युक्त धारणाओं एवं जिज्ञासाओं का समाधान।
मैंने शीला को क्यों चुना?
रजनीशपुरम की घटना को लेकर बहुतों के मन में यह सवाल उठता है कि 'ओशो तो एक बुद्ध पुरुष हैं, तो फिर वो को क्यों नहीं पहचान पाए, और यदि शीला को पहचान पाए थे, तो उन्होंने शीला को अपना सचिव व प्रवक्ता क्यों चुना?' इस प्रश्न के उत्तर में ओशो कहते हैं-
यह आपकी गलतफहमी है कि बुद्ध पुरुष भविष्य देखता है। नहीं, बुद्ध पुरुष वर्तमान में जीता है, भविष्य से उसका कोई संबंध नहीं होता। वह वर्तमान को पूरी पूर्णता के साथ, होश के साथ देखता जीता है, परंतु इंसान का भविष्य अप्रत्याशित है।
ओशो ने शीला को चुना? इस संदर्भ में ओशो कहते हैं कि-
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