त्योहार मौका है, मिलने-मिलाने का। बहाना है, हंसने-खिलखिलाने के मौके मिलते हैं जो लगातार छह महीने तक चलते रहते हैं। यूं तो ऐसा हर साल होता है, लेकिन इनमें शिरकत का जोश कभी ठंडा नहीं पड़ता और त्योहार के इस मौसम का हर साल नई उमंग से स्वागत किया जाता है। खिलखिलाते चेहरे, जोश, हर्षोल्लास, उमंग, मस्ती हर चेहरे पर नजर आती है। खुशियों भरे त्योहारों के मौसम में हम इन्हीं की बात करना पसंद भी करते हैं। लेकिन एक ऐसा पहलू भी है जो अनछुआ है, उदास है, मायूस और परेशान है।
इसे समझने के लिए घर की उस महिला के चेहरे को ध्यान से पढ़िए, जो घर और कामकाजी जीवन में पहले से ही तालमेल बिठाने की कोशिश कर रही है। त्योहार की तैयारी और घर की सफाई उसके हिस्से में ही आते हैं। ऐसे में उस पर पड़ने वाले इस अतिरिक्त दबाव को सहजता से ले पाना उसके लिए आसान नहीं होता। इस पहलू को और भी समझना चाहती हैं तो उस व्यक्ति से मिलिए जो अपने कामकाजी जीवन के कारण त्योहार मनाने घर नहीं जा पा रहा। उस व्यक्ति के भीतर जिस तरह के भाव चल रहे होते हैं, उसे ही फेस्टिवल एंग्जाइटी कहते हैं।
समझिए फेस्टिवल एंग्जाइटी को
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