कहते हैं जिंदगी आज में है, न कि आने वाले कल में और न ही बीते हुए कल में। लेकिन कई बार हम जिंदगी के खूबसूरत सफर को इस कल के फेर में पड़कर जीना ही भूल जाते हैं। अकसर हम खुद को कल की चिंता में ऐसे फंसा लेते हैं कि हमारा आज हमें भारी लगने लगता है। हम पहचान ही नहीं पाते कि इस कल में उम्मीदों और अफसोस का जाल में हम फंस चुके हैं। जीवन की डगर में अकसर ऐसे मौके आते हैं, जहां या तो हम जीत जाते हैं या कोई बड़ी गलती कर बैठते हैं और फिर जीवन भर उस गलती का अफसोस और पछतावा करते रहते हैं। गलती से सीखना और सबक लेकर आगे बढ़ना समझदारी है। पर, उसका पछतावा लेकर आगे बढ़ना दरअसल खुद को छलने जैसा है, जहां हमें लगता है कि हम आगे बढ़ गए हैं, लेकिन हकीकत में हम आज भी उसी मोड़ पर खड़े होते हैं। मनोचिकित्सक डॉ. इला जैन कहती हैं कि अगर कोई बात ऐसी है, जिसे ठीक करना हमारे हाथ में है तो अपने अहम को किनारे रखकर बात ठीक कर लेनी चाहिए। यह खुद की मानसिक सेहत के लिए ही अच्छा होता है। वहीं अगर पछतावा किसी ऐसी बात का है, जो हमारे हाथ से निकल चुकी है तो उसे भुलाना ही बेहतर होता है।
पछतावे का दिल पर असर
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