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बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की पहचान भले ही एक दलित नेता के रूप में रही हो, लेकिन जब वह सियासत के मैदान में इंट्री करती हैं तो अपनी सहूलियत के हिसाब से राजनैतिक'चोला' बदलती रहती हैं। भले आज मायावती थोड़ी पिछड़ी हुई नजर आ रही हों, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्होंने हार मान ली हो। खासकर 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद वह अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने के लिए ज्यादा ही गंभीर नजर आ रही हैं, जिसका असर भी दिखाई पड़ रहा है। इस समय बसपा सुप्रीमो की नजर मुसलमानों के साथ अति पिछड़े समाज के वोटरों पर लगी है, जो फिलहाल किसी एक पार्टी के पीछे खड़ा नजर नहीं आता है और समय के साथ अपनी पार्टी बदलता रहता है। सब जानते हैं कि मायावती अपने राजनैतिक नफे-नुकसान का बहुत ध्यान रख हैं, इसीलिए कभी वह 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की बात करती है तो कभी उनके पार्टी के कार्यकताओं द्वारा 'ब्राह्मण शंख बजायेगा, हाथी बढ़ता जाएगा' जैसे नारे दिए जाते हैं। पिछड़ा समाज के वोटरों पर डोरे डालने के लिए उन्हें (पिछड़ा समाज) अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने का भी खेल खूब चलता रहा है।
बसपा सुप्रीमो मायावती अपने स्वभाव के अनुसार 2024 के आम चुनाव से पूर्व भी काफी बदली-बदली नजर आ रही हैं। इसीलिए भले ही उन्होंने अपनी शुरुआती दौर की राजनीति में पिछड़ा समाज को अहमियत नहीं दी, लेकिन अब अब बदले हालात में पिछड़ों और उसमें भी अति पिछड़ा वर्ग के वोटरों को लेकर मायावती कुछ अधिक हाथ-पैर मार रही हैं। इसी कड़ी में उन्होंने प्रदेश बसपा की कमान अपने एक अति पिछड़े नेता को सौंप कर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अति पिछड़ों की सियासत को एक बार फिर से गरमा दिया है। वैसे पिछड़ों में अति पिछड़ा कि सियासत ठीक वैसे ही काफी पुरानी है, जैसे दलितों और पिछड़ों के आरक्षण कोटे में अति पिछड़ा और अति दलितों को अलग से कोटे में कोटे की बात होती रहती है। गौरतलब हो कि प्रदेश की राजनीति में अति दलितों और अति पिछड़ों की सियासत से कोई भी दल बच नहीं पाया है। चाहे भाजपा हो, सपा हो अथवा कांग्रेस-बसपा, सभी समय-समय पर इस सियासत में गोता लगा चुके हैं। कुल मिलाकर यूपी में जातीय गोलबंदी का खेल लगातार चलता रहता है।
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फक्कड़ कवि थे निराला !
गुराला हिन्दी के उन चंद कवियों में हैं, जिनकी लोकप्रियता व फक्कड़पन को कम ही लोग छू पाये हैं।
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चुनाव तक किस करवट बैठेगा नीतीश का ऊंट
इस साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होने वाले हैं और सत्ता के सिंहासन पर पहुंचने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभी दलों के लिए जरूरी हैं। लालू चाहते हैं कि नीतीश भाजपा का साथ छोड़कर उनकी तरफ आ जाएं, जबकि भाजपा यह अच्छी तरह समझती है कि वह अकेले दम पर राज्य में जीत हासिल कर अभी सरकार बनाने की हालत में नहीं है।
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इस बार नए अंदाज़, नए तेवर में हेमंत सोरेन
झारखंड में सत्ता की कुर्सी संभालने के बाद सीएम हेमंत सोरेन के अंदाज़ और तेवर दोनों बदल गये हैं।
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ठाकुरबाड़ी के किस्से
देश के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर के दादा द्वारकानाथ टैगोर इतने बड़े ज़मींदार थे कि जब वे लंदन पहुंचे तो महारानी विक्टोरिया ने उन्हें प्राइवेट डिनर पर बुलाया था। कोलकता में ठाकुरबाड़ी को इन्होंने ही बसाया था। गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के कुटुंब वृत्तांत पर आधारित नई किताब 'ठाकुरबाड़ी' इन दिनों चर्चा में है। प्रस्तुत है अनिमेष मुखर्जी की इस चर्चित पुस्तक का एक अंश-
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एक राज्य, एक नागरिकता
उत्तराखंड ने आखिरकार समान नागरिक संहिता को अपनाकर संविधान के अनुच्छेद 44 के सपने को साकार कर दिया। यह वह अनुच्छेद है जो भारतीय नागरिकों के लिए पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की वकालत करता है। केन्द्र सरकार पूरे देश में इसे लागू करने के लिए दृढ़ संकल्प है। जल्द ही पूरा देश इस दिशा में कदम बढ़ाएगा। पढ़िए दह्तक टाइम्स” के प्रधान संपादक राम कुमार सिंह की यह रिपोर्ट।
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ट्रंप के नए अवतार से क्यों डरी दुनिया !
में डोनाल्ड ट्रंप खुद अमेरिका के बड़े बिजनेसमैन हैं। जनवरी 2025 के मध्य तक ट्रंप की कुल सम्पत्ति 6.8 बिलियन डॉलर थी। उनके करीबी दोस्त व एक्स के मालिक और स्पेसएक्स और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क अमेरिका के दूसरे सबसे बड़े कारोबारी हैं। मस्क दुनिया के सबसे अमीर आदमी है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव डोनाल्ड ट्रंप को एलन मस्क ने खुलकर सपोर्ट किया था। जब ट्रंप ने जीत दर्ज की तो इनकी कंपनियों के शेयरों में तगड़ी उछाल देखने को मिली। 'दस्तक टाइम्स' के एडीटर दयाशंकर शुक्ल सागर की एक रिपोर्ट
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मील का पत्थर साबित होंगे राष्ट्रीय खेल
एशियन गेम्स 1982 ने राजधानी दिल्ली को कुछ ही दिनों में तमाम खेलों के इंटरनेशनल आयोजन के लिए तैयार कर दिया था।
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महाकुंभ अलौकिक व अनूढा मेला
प्रयाग की धरती पर दुनिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा मेला सजा हुआ है। ठीक वैसा आयोजन जिसकी परिकल्पना हिन्दू धर्म की प्राचीन स्मृतियों ने की थी। पौराणिकता और परंपराओं में अटूट श्रद्धा रखने वाले आस्था में डूबे असंख्य लोग जाने-अनजाने किए पापों से मुक्ति और मोक्ष की कामना लिए संगम की ओर चले आ रहे हैं। कोई विज्ञापन, कोई प्रचार नहीं। न उम्र की सीमा न जाति का बंधन। न स्त्री पुरुष का भेद, न अमीरी गरीबी का कोई फासला। न चेहरे पर सैकड़ों मील के सफर की कोई थकान। सब सदियों से बहती पवित्र गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती में डुबकी लगाने को आतुर हैं। कुंभ नगरी से संजय पांडेय और आनंद त्रिपाठी की रिपोर्ट।
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सत्य का ज्ञान ही सब दुःखों से दिला सकता है मुक्ति
भले ही कोई किसी जाति, पन्थ, राष्ट्र अथवा विशेष प्रवृत्तियों वाला व्यक्ति हो और बदले में धन अथवा अन्य किसी भी रूप में किसी प्रतिफल की आकांक्षा न करते हुए मानवमात्र की सेवा ही उसके जीवन का उद्देश्य हो, यही यथार्थ सेवा है।
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आज का स्त्री विमर्श बंदर के हाथ में उस्तरा
चर्चित स्त्रीवादी लेखिका गीताश्री ने अपने लेख की शुरुआत में आलोचक व लेखक अखिलेश श्रीवास्तव 'चमन' का नाम लिए बगैर उनकी एक टिप्पणी के आधार पर उनके मर्दवादी नज़रिए पर लानत - मलानत भेजी। एक लेखक की टिप्पणी पर एक नामचीन लेखिका इतनी भड़क जाएं कि अपनी बात शुरू करने के लिए उन्हें संदर्भित करना पड़े तो जाहिर है लेखक की टिप्पणी बेमानी नहीं रही होगी । उसने कोई ऐसी रग छुई है जहां किसी कोने में दर्द छुपा है। बीते 20 साल के स्त्री विमर्श लेखन का एक समानांतर पक्ष जानने के लिए 'दस्तक टाइम्स' ने चमनजी से आग्रह किया कि जो 'सदविचार' उन्होंने किसी साहित्यिक जलसे में दिया था, उसे वह हमारे मंच पर विस्तार दें ताकि मौजूदा दौर के स्त्री विमर्श की एक सटीक तस्वीर पाठकों के सामने आए। तो मुलाहिजा फरमाइये मि. चमन का यह आलेख |