25 सितंबर को जिस तरह से गहलोत समर्थक विधायकों ने गुटबाजी कर पार्टी आलाकमान के पर्यवेक्षक व वर्तमान में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे व कांग्रेस स्टेरिंग कमेटी के सदस्य तथा तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अजय माकन द्वारा बुलाई गई विधायक दल की बैठक का बहिष्कार किया था. उसका परिणाम कांग्रेस को आने वाले लंबे समय तक भुगतना पड़ेगा. उस घटना से जहां पार्टी का अनुशासन तो तार-तार हुआ ही था. वही नेताओं में आपसी गुटबाजी भी इस कदर बढ़ गई कि एक गुट के नेता दूसरे गुट के नेता को देखना भी पसंद नहीं कर रहे हैं. सचिन पायलट समर्थक नेता जहां आगामी चुनाव को देखते हुए पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं. वही अशोक गहलोत समर्थक नेता किसी भी सूरत में पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने देने का प्रयास कर रहे हैं.
गहलोत समर्थक विधायकों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी से बगावत कर सचिन पायलट व उनके समर्थक विधायक गद्दारों की श्रेणी में आ चुके हैं. ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री कैसे बनाया जा सकता है. उस समय यदि अशोक गहलोत सतर्क रहकर विधायकों को एकजुट नहीं करते तो पायलट समर्थक विधायक राजस्थान में भाजपा से मिलकर कांग्रेस की सरकार गिरा चुके होते. मगर मुख्यमंत्री गहलोत की सतर्कता के चलते ही सरकार बच पाई थी.
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