महाराष्ट्र इस मायने में क्लासिक केस है कि कैसे केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी जोड़-तोड़, तोड़फोड़ और पाला बदल के सहारे अपना दबदबा कायम रख रही है। दबदबे की यह पटकथा जून 2022 के आखिरी हफ्ते में लिखी गई। उस दिन मुंबई में काले बादल छाए हुए थे, लेकिन उन्हें बरसने की कोई जल्दी नहीं थी। बल्कि उससे ज्यादा जल्दबाजी और हड़बड़ी तो सियासी आसमान में दिख रही थी। उस दिन पटकथा के मुख्य किरदार 58 वर्षीय एकनाथ शिंदे थे, जो अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं। उस वक्त वे शिवसेना के बड़े नेता और राज्य की महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में शहरी मामलों के मंत्री थे। लेकिन देखते ही देखते परिदृश्य बदला और सियासी गणित बिलकुल अलग हो गए। एकनाथ शिंदे ने भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला लिया। दोनों के मिलने से राजनीति में हलचल हुई और एकनाथ शिंदे शिवसेना के 40 बागी विधायकों की मदद से राज्य में नई सरकार के मुखिया बन गए।
उनके इस कदम से सबसे ज्यादा नुकसान शिवसेना को हुआ। उनके इस कदम की किरकिरी भी हुई लेकिन सत्ता के आगे ये ताने-उलहाने बहुत कम थे। उन्होंने एक तरह से एमवीए और शिवसेना की कमर तोड़ दी। राजनीतिक विश्लेषक, राजनीति के दिग्गज समझे जाने वाले बड़े नेता, राजनीति की खबर रखने वाले खिलाड़ी सब इस कदम के आगे फेल हो गए। ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ जैसे प्रश्नों के भंवर में सबको छोड़ शिंदे मुख्यमंत्री होने का आनंद उठा रहे हैं। इसमें भी गजब यह हुआ कि भाजपा नेता पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने उनके मातहत उप-मुख्यमंत्री बनना मंजूर कर लिया।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका को असंवैधानिक करार दिया। चुनाव आयोग ने शिंदे के गुट को ही ‘असली’ शिवसेना के रूप में मान्यता दे दी। अब शिंदे के पास ही पार्टी का नाम और धनुष-बाण चुनाव चिन्ह है। शिवसेना बनाने वाले बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे की शिवसेना (उद्घव बालासाहेब ठाकरे या यूबीटी) को जलती हुई मशाल का चुनाव चिन्ह थमा दिया गया।
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