बीते बीते चार जून को लोकसभा चुनाव के परिणामों के साथ एक और नतीजा आया। दोनों नतीजे अप्रत्याशित थे। फर्क बस इतना था कि अंडरग्रेजुएट राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट-यूजी) के परिणामों को कायदे से दस दिन बाद आना था। डॉक्टर बनने का सपना पाले लाखों अभ्यर्थियों की किस्मत का डिब्बा समय से पहले भले खुल गया, लेकिन उसमें से ऐसे चौंकाने वाले आश्चर्य निकल कर आए कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंचने में हफ्ता भर भी नहीं लगा। मोदी सरकार के शपथ ग्रहण से पहले ही उसके ऊपर परचा लीक से लेकर तमाम किस्म की अनियमितताओं का ग्रहण लग गया।
पूरा देश जब दो महीने तक आम चुनाव में व्यस्त था और तीन चरण का मतदान हो चुका था, यह घोटाला उसी समय बिहार और गुजरात में खुल गया था। दोनों सूबों की पुलिस ने 5 मई को आयोजित हुई परीक्षा के बाद पाई गई अनियमितताओं के संदर्भ में एफआइआर भी दर्ज कर ली थी। गिरफ्तारियां भी हुई थीं। कुछ गिरफ्तारियां दिल्ली, नोएडा आदि जगहों पर छापे मार के दिल्ली पुलिस ने की थी। फिर सुप्रीम कोर्ट में परीक्षा परिणामों को रोकने के लिए एक याचिका भी लगाई गई, लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि चुनाव संपन्न होने और परिणाम जारी होने के बाद दर्जन भर याचिकाएं फिर से सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गईं। अबकी मामला और संगीन था।
मुजरिम-मुंसिफ एक
नीट के परिणामों में पहले स्थान पर 67 अभ्यर्थी पाए गए जिन्हें 720 में से 720 अंक मिले थे। कुछ ऐसे परीक्षा केंद्र सामने आए जहां से अकेले छह अभ्यर्थी पहले स्थान पर थे। न सिर्फ इन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक, बल्कि खुद परीक्षार्थी भी सकते में थे कि ऐसा कैसे हो गया। इसके पीछे अनुग्रह अंक (ग्रेस मार्क) का अजीब खेल सामने आया जो एनटीए ने समय की क्षतिपूर्ति करने के लिए 1563 छात्रों को दे दिया था। इसी के कारण नतीजे भी अजीबोगरीब निकले थे।
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