भाजपा ने संविधान को पवित्र पुस्तक की तरह पेश किया ताकि विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस की सियासी साख पर उंगली उठाई जा सके। दूसरी ओर विपक्ष ने संविधान के मूल्यों और आदर्शों को मुद्दा बना कर भाजपा की केंद्रीकरण की राजनीति पर सवाल उठाए। मेरी राय में संविधान की ये विरोधाभासी व्याख्याएं व्यापक राजनैतिक आम सहमति से उपजी हैं। समूची राजनैतिक बिरादरी संविधान को राजनैतिक प्रेरणा का स्रोत मानती है। इस बात पर भी सहमति है कि संविधान का अक्षरशः पालन होना चाहिए और उसकी भावना का खयाल रखा जाना चाहिए। यहां तक कि इस महान कानूनी ग्रंथ के रचयिता राष्ट्र-नायकों (नेहरू को छोड़कर !) पर भी कोई असहमति नहीं है।
फिर भी, संविधान की गंभीर राजनीति की ओर कदम बढ़ाने की कोई दिलचस्पी नहीं दिखती है। राजनैतिक दलों की दिलचस्पी संविधान को लेकर बयानबाजी में अधिक है। वे इसके जरिये एक-दूसरे को नीचा दिखाने या चुनावी होड़ के बाजार में खुद को जायज ठहराने की कोशिश करते हैं। समाज के गहरे लोकतांत्रिक बदलाव का विचार उन्हें बिल्कुल भी नहीं भाता है। रचनात्मक राजनीति में दिलचस्पी के इस विचित्र अभाव को हम आजादी के बाद के दौर में भारतीय संविधान के राजनैतिक सफर पर एक नजर डालने से समझ सकते हैं।
गौरतलब है कि आजादी के बाद शुरुआती दशकों में संविधान बस पूजा-अर्चना की वस्तु नहीं था। उसे हमेशा देश की राजनीति और समाज के कायाकल्प के लिए एक कानूनी-राजनैतिक व्यवस्था की तरह देखा गया। दरअसल, देश में लोकतंत्र की आम दशा-दिशा का व्यापक संवैधानिक अवधारणाओं के नजरिये से आलोचनात्मक मूल्यांकन के कुछ गंभीर प्रयास भी हुए।
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
माघशीर्ष का संगीत महोत्सव
तमिलनाडु की राजधानी में हजारों साल पुरानी संगीत की विरासत को सहेजने का अनूठा जश्न
भोपाल का विष पीथमपुर को
चालीस साल पहले हुए हादसे का जहरीला कचरा जलाने की कवायद एक बार फिर खटाई में
सुनहरे कल के नए सितारे
हर मैदान में नई-नई, कच्ची उम्र की भी, प्रतिभाओं की चमक चकाचौंध कर रही है और खुद में ऐसे बेमिसाल भरोसे की गूंज भारतीय खेलों की नई पहचान बन गई है, भारतीय खेलों से हर पल जुड़ती कामयाबी की नई कहानियां इसका आईना हैं
वोट के बाद नोट का मोर्चा
चुनाव के बाद अब बकाये पर केंद्र से हेमंत की रार, लाभकारी योजनाओं का बोझ पड़ रहा भारी
काशी
नीलकंठ की नगरी - काशी, अनादि और अनंत काल का प्रतीक रही है। कथाएं प्रचलित हैं कि पिनाकधारी, नीलकंठ शिव को यह नगरी अतिप्रिय है। मान्यता है कि यहां मां पार्वती संग शिव रमण और विहार किया करते हैं। काशी का बाशिंदा हो या यहां आने वाला भक्त, हर सनातनी जीवन में एक बार काशी की भूमि को स्पर्श करना चाहता है।
कांग्रेस का संगठन-संकट
हुड्डा विहीन रणनीति और पुनर्निर्माण की चुनौती के साथ स्थानीय निकाय चुनावों की परीक्षा सामने
दस साल की बादशाहत खत्म
तमाम अवसरों के बाद भी भारतीय क्रिकेट टीम महत्वपूर्ण खिताब बचाने से चूक गई
पीके की पींगें
बीपीएससी परीक्षा में धांधली और पेपर लीक के आरोप में युवाओं के आंदोलन में प्रशांत किशोर की शिरकत के सियासी मायने
सरे आसमान रोशन प्रतिभाएं
हर खेल के मैदान में दुनिया में देश का झंडा लहरा रहे नए-नए लड़के-लड़कियां अपने ज्बे और जुनून से तस्वीर बदल रहे हैं, ऐसे 11 सितारों पर एक नजर
संगम में निराला समागम
सदियों से हर बारह वर्ष पर लगने वाला दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक और धार्मिक मेले के रंग निराले