यह सिर्फ तीन महिलाओं की कहानी नहीं है। यह निचले स्तर पर काम करने वाले उन लोगों की वास्तविकताओं की कहानी है, जो कहीं गहरे हमारे अनुभव और कल्पना में छुपे हुए हैं। यह मध्यवर्गीय भारत के बारे में है। हम सभी के बारे में, हमारी इच्छाओं, सीमाओं और रोशनी तथा छाया के बीच के नाजुक अंतरसंबंध के बारे में, जो हमारे जीवन को आकार देता है। ऑल दैट वी इमेजिन ऐज लाइट में पायल कपाड़िया की दृष्टि सिनेमा को अपनी विधा की सीमाएं तोड़ती है और कोई कविता, संवाद और कई बार एकालाप जैसा आभास देती है। कपाड़िया धीमे लेकिन पुरजोर तरीके से दर्शकों से ऐसी दुनिया के बारे में अपनी भूमिकाओं पर पुनर्विचार करने का आग्रह करती हैं, जहां विशेषाधिकार और हाशिए के लोगों के साथ असहज सह-अस्तित्व है। कपाड़िया हमें जीवन के व्यक्तिगत और राजनैतिक दोनों आयामों पर आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करती हैं।
सिनेमाई विधा में स्टिल फ्रेम का इस्तेमाल विरले ही होता है, लेकिन कपाड़िया उसके इस्तेमाल से ऐसी जगह बनाती हैं, जहां जुड़ाव के लिए एक बिंदू है, जो कथा को बुनता है, जो प्रामाणिक है, प्रतीकात्मक है और कई स्तरों पर प्रतिबिंबित होता है। हाइब्रिड फॉर्म में कपाड़िया की महारत सहजता से फिक्शन को नॉन-फिक्शन के साथ जोड़ती है। इससे फिल्म के पात्रों और दर्शकों दोनों के लिए गहन और अंतरंग अनुभव तैयार होता है।
कभी न ठहरने वाली मुंबई की रफ्तार और रत्नागिरी की अलसाई शांति की दोहरी पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म आधुनिक भारत के सभ्य परिदृश्यों के भीतर मानव अस्तित्व की जटिलताओं की पड़ताल करती है। सिर्फ प्यार के लिए नहीं, बल्कि स्थान, पहचान और संबंध की भावना के लिए हम तीन महिलाओं के जीवन के गोपनीय पहलुओं से परिचित होते हैं, उनकी लालसा की पड़ताल करते हैं। पार्वती, प्रभा और अन्नू तीनों परिस्थितियों के अनुसार बदलती जा रही हैं।
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